ईश्वर को भी जब अपनी महफ़िल सजानी होती हैं..
ईश्वर को भी जब अपनी
महफ़िल सजानी होती हैं..
बुला लेता हैं धरती से कलाकार..
सुनता हैं उनसे नये गीत...
लेता हैं उनकी रचनाओ..से मज़े..
कभी सुनता हैं रवि शंकर जी का सितार..
कभी जगजीत जी की ग़ज़ल..
कभी राजेश खन्ना..की एक्टिंग..कभी कुश्ती का मज़ा.. ..
क्या करे बेचारा ईश्वर..
थक जाता होगा बेचारा..
धरती के लोगो की गलिया खाकर..
चंद गिने चुने लोग ही तो
उसे सच्चा प्यार करते हैं
बाकी तो अपने स्वार्थ के लिए
उसका इस्तेमाल करते हैं..
स्वार्थ की पूर्ति होने पे चढ़ाते हैं
सोने का मुकुट..
या फिर छत्र का दान करते हैं..
लेकिन ईश्वर तो ईश्वर हैं...
उसे पहचान हैं सच्चे प्यार की...
सो वो हम कलाकारो से ही
प्यार की उमीद करता हैं..
क्यूंकी कलाकार कभी
आवरण से खुद को नही ढकते..
और जो ढकते हैं वो
सच्चे कलाकार नही होते.
महफ़िल सजानी होती हैं..
बुला लेता हैं धरती से कलाकार..
सुनता हैं उनसे नये गीत...
लेता हैं उनकी रचनाओ..से मज़े..
कभी सुनता हैं रवि शंकर जी का सितार..
कभी जगजीत जी की ग़ज़ल..
कभी राजेश खन्ना..की एक्टिंग..कभी कुश्ती का मज़ा.. ..
क्या करे बेचारा ईश्वर..
थक जाता होगा बेचारा..
धरती के लोगो की गलिया खाकर..
चंद गिने चुने लोग ही तो
उसे सच्चा प्यार करते हैं
बाकी तो अपने स्वार्थ के लिए
उसका इस्तेमाल करते हैं..
स्वार्थ की पूर्ति होने पे चढ़ाते हैं
सोने का मुकुट..
या फिर छत्र का दान करते हैं..
लेकिन ईश्वर तो ईश्वर हैं...
उसे पहचान हैं सच्चे प्यार की...
सो वो हम कलाकारो से ही
प्यार की उमीद करता हैं..
क्यूंकी कलाकार कभी
आवरण से खुद को नही ढकते..
और जो ढकते हैं वो
सच्चे कलाकार नही होते.
5 Comments:
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आपकी कविता पढ़ के
अच्छा लगी अपर्णा जी...
" ईश्वर को भी जब अपनी
महफ़िल सजानी होती हैं..
बुला लेता हैं धरती से कलाकार.."
सही कहा आपने.....
bahut bahut shukriya sir....
बहुत सही कहा आपने
ईश्वर सच्चे प्यार को पहचानता है भले कोई कितना दिखावा कर ले
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर
साभार !
ब्लॉग पे आने का आभार...शिव नाथ जी...सच कहा सच्चे भक्त को परमात्मा के सिवा कौन पहचान सकता हैं..
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