Friday, October 18, 2013




तुम्हारे जाने के बाद  
जब मैने पलटी तुम्हारी चीज़े.. 
निकल आया तुम्हारा प्रेम.. 
जो तुमने रखा था सहेज कर  
मेरे लिए.. 
पुराने संदूक मे.. 
जब गई पीछे आँगन मे...... 
वहाँ भी चमक रही थी कुछ चीज़े.. 
शायद वहाँ भी छोड़ दिया था  
तुमने कुछ मेरी खातिर.. 
ताकि मैं बेचैन  
ना हो जाउ तुम्हारे बिना.. 
तुम हर तरह से मेरे  
करीब रहो... 
किसी ना किसी रूप मे... 
तुम मुझको छूते रहो.. 
मेरे आस पास रहो.. 
मुझे महसूस करो ... 
क्यूँ यही बात थी ना..

1 Comments:

At October 19, 2013 at 9:48 PM , Anonymous Anonymous said...

hammm.. ( nice n nice )

 

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