मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहाँ, कैसे, कब
पता नहीं
शायद
तुम्हारी कल्पनाओं में
तुम्हारी ही प्रेरणा बन
तुम्हारी कलम में
मैं उतरूंगा
या तुम्हारी
खूबसूरत डायरी पर
एक खामोश तहरीर की तरह
मैं तुम्हे देखता रहूँगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कहाँ, कैसे, कब पता नहीं
चाँद की रौशनी बन
दूंगा एक रात
तारों की चादर बिछा
बैठ जाऊंगा तुम्हारे पास
रात भर बैठ कर
बतियाते हुए
बिताएंगे रात
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कब ,कहाँ ,कैसे
पता नहीं
बारिश की बूँद बन
चमकूँगा तुम्हारी पेशानी पे
एक शीतल एहसास बन
मैं तुमसे फिर मिलूंगा
कब कहाँ कैसे पता नहीं
मुझे इतना पता है
वक़्त के फासले चाहे
कहीं तक ले जाये
पर मैं हर जनम में
तुम्हारे साथ चलूँगा
तुम्हारी परछाई बन
भले ही जिस्म जल कर
खाक हो जाये
या मौत बेरहमी से
मुझे ले जाये
तुम्हे फिर भी मिलूंगा
कब कहाँ कैसे पता नहीं
तुम्हारी यादों में
रोशन रहूँगा
तुम्हारे तनहा लम्हों में
आंसू बन
तुम्हारी आँख से गिरूँगा
मैं तुम्हे फिर मिलूंगा
कब कहा कैसे पता नहीं
आज भैया को बिछुड़े एक महीना हुआ
2 Comments:
ohh....om shanti
:( :( :( ......
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