Friday, October 7, 2016

प्रेम में पगी स्त्री


प्रेम में पगी स्त्री को 
पढ़ पाना 
आसान नहीं होता
सब कुछ छिपा लेती है 
वो मन के अंदर
जैसे कछुवे को होती है महारत
अपनी इन्द्रियों को अंदर 
बाहर करने की
स्त्री भी
मनोभाव ऐसे ही कर लेती है अंदर
हा बस वो प्रेम में पग कर 
खुश बहुत रहती है
गाती है वृहद गान

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