Sunday, December 4, 2016

स्तब्ध हूँ
समय की रेख से!

अपनी किस्मत की 
उड़ान से!

कहाँ जाऊंगी?
क्या करुँगी?
कुछ नहीं पता

जो निर्धारित लकीरे थी
वो तो मिट गई

रह गया शून्य
अंधकार, अकेला
लंबा, नुकीला रास्ता

अब इसे कैसे 
पार करना है
कुछ नहीं पता?

बस चलना है
तयशुदा रास्तो से 
अलग
एक नए रास्ते पर
अकेले, 
गति संभाल कर

क्योंकि 
उम्र भी हो चली
कोई सँभालने को भी नहीं
नया रास्ता
संभाली हुई गति
मेरा पैर बचा कर चलना
ईश्वर का आसरा

1 Comments:

At December 7, 2016 at 6:40 AM , Anonymous Anonymous said...

:(

 

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