Thursday, October 13, 2016

चलो अनंत यात्रा पे


चलो अनंत 
यात्रा पे चले
जहाँ न हो 
कोई साथी
बस अकेले चले
न हो कोई बोझ 
मन का
न ही तन का
रहे हाथ खाली
न हो द्वेत कोई
नहीं द्वेष कोई
अपना आंकलन हो
चलो अनंत यात्रा पे चले

किया जो भी उम्र भर
जोड़े जो सामान 
बेईमान होकर,
कभी झूठ बोला
कभी किसी को ठगा
अपने माँ बाप से भी
न सगा बन सका
आज हिसाब किताब करे

चलो अनंत यात्रा पे चले
बने अपने साक्षी
दे सच्ची गवाही खुद की
अपने से अपनी बात करे
सत्य से कभी न डिगे
चलो अनंत यात्रा पे चले

नहीं साथ कोई
तेरे आज होगा
पत्नी, पति, बच्चा
सब धरा पे ही होगा
मन ने जो किया
वो सब कहेगा
एक वो ही सुनेगा
एक तू ही कहेगा
घूमेगी एक बार फिर
सच की सुई तुम पे
जो किया वही धर्म होगा
तेरा कर्म तेरा अपना ही होगा
चलो अनंत यात्रा पे चले
न हो बोझ कोई
सब बोझ हल्का करे☺☺☺☺---

1 Comments:

At October 14, 2016 at 2:50 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-10-2016) के चर्चा मंच "उम्मीदों का संसार" {चर्चा अंक- 2496} पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home