Sunday, April 15, 2012

मैं नदी हूँ लेकिन इसमे कल कल तेरी हैं
मैं हवा हूँ लेकिन इसमे चंचलता तेरी हैं
अगर मैं प्रशण हूँ तो इसमे भी सार्थकता तेरी हैं
तूने मुझे दिए हैं आयाम, कर सकु कुछ सार्थक प्रशन
उत्तर से क्यूँ घबराता हैं, उत्तर तो मुझे आता हैं......
तेरी कोई परीक्षा नही....तू निसचिंत रह...


हवा भी तुम्हारी
आकाश भी तुम्हारा
पंख भी तुम्हारे
गति भी तुम्हारी
जब सब तुम्हारा हैं तो थकान कैसी
 

प्यार से अस्मिता गर्वित होती हैं
धूसरित नही होती
जो भी समझो बंधु सखा मित्र पिता
सहयात्री...हर रूप मे प्यार ही करना हैं..
तुम्हारे साथ यू ही बढ़ना हैं..
 


रंगो मे क्यूँ खो गये
अरे आप तो आज
फिर धोखा खा गये
फूल वासना नही
प्रेम का प्रतीक हैं
आप क्यूँ भटक जाते हैं
आप सिर्फ़ प्रेम करो...
प्रेम को हर जगह महसूस करो
तृष्णा खुद ही लौट जाएगी
आप बुलाओगे फिर भी
नही आएगी..........
करो मेरी बात का भरोसा
रंगो से नही...खुद से प्यार करो
अपने प्यार पे एतबार करो.. 



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