एक गठरी मे हमारा घर
एक गठरी मे हमारा घर
ये माँ ही दे सकती हैं
और हम है की उस घर मे
नौ महीने भी बड़ी मुश्किल से बिताते हैं
कभी कभी तो इतना गुस्सा आता हैं
कि वही से माँ को भी लतियाते हैं
सारी देह मिलने को आतुर रहती हर वक़्त
उनसे मिलने के लिए.......
माँ भी बाँट जोहती हैं गठरी खुलने की
कब होगा नन्हे लाल गोल मटोल से मिलन..
सोच कर ही बढ़ जाती हैं उसकी सिहरन
ये माँ ही दे सकती हैं
और हम है की उस घर मे
नौ महीने भी बड़ी मुश्किल से बिताते हैं
कभी कभी तो इतना गुस्सा आता हैं
कि वही से माँ को भी लतियाते हैं
सारी देह मिलने को आतुर रहती हर वक़्त
उनसे मिलने के लिए.......
माँ भी बाँट जोहती हैं गठरी खुलने की
कब होगा नन्हे लाल गोल मटोल से मिलन..
सोच कर ही बढ़ जाती हैं उसकी सिहरन
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