Sunday, April 15, 2012

एक गठरी मे हमारा घर

एक गठरी मे हमारा घर
ये माँ ही दे सकती हैं
और हम है की उस घर मे
नौ महीने भी बड़ी मुश्किल से बिताते हैं
कभी कभी तो इतना गुस्सा आता हैं
कि वही से माँ को भी लतियाते हैं
सारी देह मिलने को आतुर रहती हर वक़्त
उनसे मिलने के लिए.......
माँ भी बाँट जोहती हैं गठरी खुलने की
कब होगा नन्हे लाल गोल मटोल से मिलन..
सोच कर ही बढ़ जाती हैं उसकी सिहरन

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