जुस्तजू
सुनो मैं अब
जीना चाहती हूँ
चाहती हूँ
कुछ पल लेना
खुली हवा में
सांस
झूमते पत्तों संग
झूमना चाहती हूँ
सुनो कुछ पल मैं
जीना चाहती हूँ
नहीं चाहती
कोई पाश
करना चाहती हूँ
अपनी ही तलाश
पिछला सब
भूलना चाहती हूँ
सुनो मैं अब.....
बारिश में
भीग कर
एक बार
घने जंगल में
खोना चाहती हूँ
नहीं चाहती
कोई मुझे ढूंढें
हिरणी की तरह
यहाँ वहाँ ख़ुशी से
दौड़ना चाहती हूँ
सुनो अब मैं कुछ पल.....
सूर्य की
गर्म रश्मियों संग
कुछ देर
तपना चाहती हूँ
ताकि निकल जाये
मन की
सब सीलन
नहीं रहे
कोई उबन
एकरस
नीरस
ऐसे शब्दों संग
अब और नहीं
रहना चाहती हूँ
सुनो कुछ पल अब मैं...
न हो
तेरी यादों के
मीठे घेरे
न हो कोई
पुरानी कडुवाहट
न हो बातों का
कोई जहर
सुनो अब मैं
बस कुछ पलो के लिए
जीना चाहती हूँ
आज़ाद ख्यालों में
उदास पहाड़ो पे अकेले
सर्द रातों में
चाय की चुस्कियां
अमलतास,
गुलमोहर,
चिनार तले
अच्छे पलों को
पिरोना चाहती हूँ
सुनो एक बार ही सही
मैं कुछ पलों के लिए
जीना चाहती हूँ
दोगे न
मुझे आसानी से
बाहर जाने का रास्ता
कुछ पल की
आज़ादी
हो न किसी की भी
दखलंदाज़ी
हूँ सिर्फ मैं
और मेरा
अनमोल समय
मेरी सोचों संग
खुद को
भूल जाना चाहती हूँ
सुनो मैं कुछ पल...
मेरी बर्थडे गिफ्ट समझ कर ही
दे दो न प्लीज
1 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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