Wednesday, February 8, 2012

पन्ने हो या जिंदगी

पन्ने हो या जिंदगी
प्यार से पिरोना पड़ता हैं
पिरोने के बाद खुद ही उसे
पढ़ना भी पड़ता हैं
अब इबारत उसकी सुख हो या दुख
साथ लेकर चलना पड़ता हैं
सूज जाए जो उंगलियाँ
गरम पानी  का सेक भी
देना पड़ता हैं............
फिर जब  इकट्ठा हो जाते हैं
सुख दुख के ढेर सारे पन्ने
तो मोटी सुई से सिल्ना भी पड़ता हैं
पूरी हो जाए जो किताब तो
संत कबीर की तरह
ईश्वर के आगे ज्यूँ का त्यु
रख भी देना पड़ता हैं

8 Comments:

At February 9, 2012 at 12:45 AM , Blogger Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ...शब्द को शब्दों में पिरो दिया हैं आपने ...बहुत खूब

 
At February 9, 2012 at 2:14 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सही विवेचना प्रस्तुत की है आपने!

 
At February 9, 2012 at 3:50 AM , Blogger Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब!


सादर

 
At February 9, 2012 at 5:40 PM , Blogger Sunil Kumar said...

बहुत सुंदर भाव संजोये है

 
At February 10, 2012 at 1:39 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

abhaar Anju ji..

 
At February 10, 2012 at 1:40 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

Shukriya Shastri ji...

 
At February 10, 2012 at 1:41 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Yash ji....

 
At February 10, 2012 at 1:42 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

tahe dil se abhaar..Sunil ji..

 

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