बेबसी
तुम मैं और मेरी
आराम कुर्सी
आँखे बंद करते ही
उतर जाती हूँ
सोचों की वादियों में
तुम्हारे साथ
हर लम्हा
हर पल
जो तुम्हारे साथ बीता
आँखों में तैर उठता है
जी उठती हूँ मैं
तुम मुझसे
बहुत दूर चले गए
लेकिन मुझे
ऐसा महसूस होता है
जैसे तुम मेरे
बहुत नजदीक आ गए
हर समय
तुम्हारा ही ख्याल
तुम्हारी बातें
सब कानों में
गूंजती रहती है
जैसे वो लम्हे
गुजर कर भी
गुजरे ही नहीं
ठहर से गए हो
तुम्हारे साथ
मेरी सफलताओं पे
एक तुम ही तो थे
जो खुश हुआ करते थे
मेरी छोटी छोटी बातों को भी
झट से
मान लिया करते थे
जैसे मैं एक छोटी बच्ची हूँ
और तुम मेरे पिता
सच तुम तो
मेरा साया थे
मेरे सुख दुःख के रखवाले
हर वक़्त मेरा भला
सोचने वाले
सब कुछ हैं
मैं हूँ
आराम कुर्सी है
लेकिन प्रगट रूप से
तुम नहीं हो
सुनो न
फिर से
मुझे अपनी छाया
बना लो न
नहीं रह सकती
तुम्हारे बगैर
तुम्हारे साये के बिना
जिंदगी पहाड़ सी लगती है
लगता है जैसे चारों ओर हो
घनघोर अँधेरा
और मैं अकेली
बिलकुल अकेली, , बेबस
बेसहारा
जिसको सहारा देने वाला
कोई न हो
आ जाओ न
एक बार
अब तुम्हे कभी नहीं सताऊँगी
जो कहोगे मानूँगी
मेरे पास तुम्हारे सिवा
कोई नहीं
आराम कुर्सी
आँखे बंद करते ही
उतर जाती हूँ
सोचों की वादियों में
तुम्हारे साथ
हर लम्हा
हर पल
जो तुम्हारे साथ बीता
आँखों में तैर उठता है
जी उठती हूँ मैं
तुम मुझसे
बहुत दूर चले गए
लेकिन मुझे
ऐसा महसूस होता है
जैसे तुम मेरे
बहुत नजदीक आ गए
हर समय
तुम्हारा ही ख्याल
तुम्हारी बातें
सब कानों में
गूंजती रहती है
जैसे वो लम्हे
गुजर कर भी
गुजरे ही नहीं
ठहर से गए हो
तुम्हारे साथ
मेरी सफलताओं पे
एक तुम ही तो थे
जो खुश हुआ करते थे
मेरी छोटी छोटी बातों को भी
झट से
मान लिया करते थे
जैसे मैं एक छोटी बच्ची हूँ
और तुम मेरे पिता
सच तुम तो
मेरा साया थे
मेरे सुख दुःख के रखवाले
हर वक़्त मेरा भला
सोचने वाले
सब कुछ हैं
मैं हूँ
आराम कुर्सी है
लेकिन प्रगट रूप से
तुम नहीं हो
सुनो न
फिर से
मुझे अपनी छाया
बना लो न
नहीं रह सकती
तुम्हारे बगैर
तुम्हारे साये के बिना
जिंदगी पहाड़ सी लगती है
लगता है जैसे चारों ओर हो
घनघोर अँधेरा
और मैं अकेली
बिलकुल अकेली, , बेबस
बेसहारा
जिसको सहारा देने वाला
कोई न हो
आ जाओ न
एक बार
अब तुम्हे कभी नहीं सताऊँगी
जो कहोगे मानूँगी
मेरे पास तुम्हारे सिवा
कोई नहीं
2 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
:( :)
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