उमेश भैया आपके लिए
आज तुमसे बिछड़े
चार दिन हो गए
देखो न सब कुछ
वैसे का वैसा हैं
जैसा तुम छोड़ गए थे
तुम्हारा चश्मा, रुमाल,
पर्स, घडी
सब वैसे ही है
तुम्हारा मोबाइल,
लैपटॉप सब
तुम्हारी उँगलियों का
स्पर्श ढूंढ रहे है
तुम्हारी अलमारी से झांक
रही किताबे तुमको
पूछ रही है
तुम्हारे कपड़ो से अभी भी
तुम्हारी महक आ रही है
तुम्हारे फ़ोन पे अब भी तुम्हारी
कॉल्स आ रही है
अब तुम बताओ
तुम कहाँ हो?
हम सब के बिना
कैसे रह रहे हो?
नई जगह पे दिल तो तुम्हारा भी
घबरा रहा होगा
आ रही होगी
जोरों से हिचकियाँ
हमारे याद करने की
जब से तुम गए
एक पल को भी नहीं भूले
आँखों से तुम
ओझल ही नहीं होते
हर वक़्त तुम्हारी याद,
तुम्हारी चिंता
क्योंकि यहाँ हम सब के लिए तो सब है
तुम तो बिलकुल अकेले हो
नितांत ही अकेले
1 Comments:
... :(
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