ईश्वर से संवाद
तुम कितने
जलकुकडे हो
जो चीज
मुझे अच्छी लगती है
तुम भी वही
लेना चाहते हो
मैं हूँ इस लोक की
नन्ही प्राणी
तुम क्यों
मुझे सताते हो
तुम तो
तीन लोक के सम्राट
जो चाहो
तुम्हारे पास
फिर क्यों
मुझसे जलना
मुझे नहीं आता
किसी को सताना
रुलाना या चिढ़ाना
तुम तो जैसे माहिर हो
वैसे हमारे
संसार लोक के लिए
कहते है
जिसके पास जो है
वो उतने में
खुश नहीं होता
छीन कर ही
खुश होता है
तुमने भी वही किया
मैं साधारण मनुष्य
तुम भगवान
तुम में और मुझमे
क्या अन्तर हुआ?
तुम भी धरती पे
यही खोजते हो
कौन किस बात में खुश है?
मगन है?
उस की
उसी बात से
उसे जुदा कर दो
तोड़ दो बीच का बांड
ताकि एक अकेला
इधर रह जाये
दूसरा उधर
दोनों तड़पे
लेकिन
कभी मिल न पाये
क्यों करते हो ऐसा?
क्यों मोल लेते हो दुश्मनी?
क्यों लेते हो बद दुआ?
क्या तुम्हे एक दूजे का
मिल कर रहना
रास नहीं आता?
तुम्ही तो कहते हो
सब एक होकर रहो
प्यार से रहो
नफरत मत करो
फिर
तुम क्यों सिखाते हो
हमें रोना, बिलखना, चीखना, चिल्लाना?
बेबसी के आंसू रोना
तुम तो हमारे सब कुछ हो
तो हमें दुखी करके
खुश क्यों होते हो
एक बार सोचना
ध्यान देना मेरी बात पे
खुद समझ जाओगे
फिर छोड़ दोगे ऐसी
घटिया हरकते
तब हम तुम्हे और मानेगे
हमारे दिल में
श्रद्धा बढ़ जायेगी
तुम्हारे लिए
एक बार ही सही
सोचना जरूर
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