तुम बिन कैसे रहूँ खुश तुम ही बता दो
पढ़ रही थी कहीं
आज सुबह
हे ईश्वर
सबको खुश रखना
पढ़ते ही आ गए
आँख में आंसू
जब दिल में
ख़ुशी न हो तो
कैसे खुश रहा जाये
मेरी ख़ुशी तो तुम थे
तुम ही नहीं तो
कैसे रह सकती हूँ खुश
मेरी हर बात का सबब तुम
मेरी सुबह तुम
मेरी खुशगवार शाम तुम
यहाँ तक की
झीनी बरसात में भी
एक तुम्हारी चाह
पसंद भी अपनी एक
स्वाद भी अपना एक
बोलो कैसे रहू खुश
अच्छा एक बात बताओ
तुम मेरे बिना
खुश रह सकते हो
नहीं न
तो मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों
मैं क्यों जियूँ तुम्हारे बगैर
मुझे भी आना है
तुम्हारे पास
अभी इसी वक़्त
आओ आकर ले जाओ मुझे
प्ल्ज़ जैसे
पहले सुन लिया करते थे मेरी
आज भी
मान जाओ न मेरी बात
वरना मैं खुश कैसे रहूंगी
तुम्हारे बिना यु ही
तड़प कर रात दिन
रोती रहूंगी
अब तुम जानो
तुम्हे क्या करना है
लेने आना है या यू ही
रोते हुए छोड़ देना है
2 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-08-2016) को "कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित" (चर्चा अंक-2441) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
:(
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