अमर प्रेम
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कितना पवित्र रिश्ता है प्रेम
जहाँ न लेने की चाह नहीं होती
होता है तो सिर्फ समर्पण
जो कुछ है सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा
जीते है तो तुम्हारे लिए
मर भी जाये तो बस
अपने पवित्र प्रेम के लिए
कितना कुछ दे देते है
एक ही पल में
जो जन्मों तक याद रह जाता है
एक प्यार की तरह
एक सम्पूर्ण की तरह
प्रेम से एक स्त्री ही सम्पूर्ण नहीं होती
पुरुष भी होता है
अगर प्रेम पवित्र हो तो
क्योंकि स्त्री की तरह
पुरुष को भी चाहिए होता है
एक सच्चा प्रेम करने वाला
जहाँ वह अपनी हर भावना को
जो कहीं नहीं कह सकता
व्यक्त कर सके
ले सके वो विश्वास
जो स्त्री उस से चाहती है
तभी होता प्रेम का अमर होना
वरना कहने को तो सभी प्यार करते है
लेकिन वक़्त के साथ उतर जाता है बुखार
अहम् को खो जाना
समर्पण करके खो जाना
यही है प्रेम
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