मत सो अपने ख़यालो के साथ
मत सो अपने ख़यालो के साथ
ख़यालो को पंख दो
उन्हे खुला आकाश दो
देखो कैसे सैर करेंगे ये
साथ मे दो चार परिंदो को भी
मित्र बना लाएँगे.....
सजेगी खूब महफ़िल
नये रंग छाएँगे....
आशंकाओ के बादल
भी वर्षा मे बदल जाएँगे
खुला गगन, गाता हुआ मन
कितना मधुर संगीत होगा
बीते समय और बंद मुट्ठी को खोल दो
मत हो खुद से नाराज़, हालात से खफा
ईश्वर की मर्ज़ी पे सब छोड़ दो...
बुरा वक़्त भी गुज़र जाएगा...