चलो एक आतंकी गया........
कुछ तो जीने का समय मिला...
डर डर के यू ही जीते थे....
कुछ तो हमे चैन मिला
मोहब्बत मे खुदा को ना भूल जाना
जिसने बनाया इंसान...उसे ना बिसराना
अब आपकी क्या कहे साहब...
अभी तक लिखते थे कविता
अब जिंदगी ग़ज़ल बन गई...
रहती थी जो दूर आपसे....
अब वो आपकी हमसफ़र बन गई..
उदासी का मंज़र मिला...
जब से तुम हो गये...
कोई ना तुम सा मिला..
जब से तुम हो गये....
रह गई यादें
जहन मे तुम्हारी..
गये जो तुम
यादों का काफिला मिला..
सांसो मे बसे हो तुम,
आँखो मे बसे हो तुम..
मेरे मन मे बसे हो तुम
मेरे तन मे बसे हो तुम
सबके दिन होते हैं..
सबके होते हैं अरमान..
ना पूरे हो दिन जिनके..
जानो उन्हे मरे समान
तुम करते हो जो हमारी खातिर
उसमे तुम्हारा प्यार झलकता हैं
लिखते हो ग़ज़ल हमारी खातिर
हमे ये अच्छा लगता हैं..
तेरी बाते नही मिलती
तेरा लहज़ा नही मिलता
इस शहर मे कोई
तेरे जैसा नही मिलता