Thursday, March 7, 2013

ये भी पुरुषो तुम्हारी साजिश तो नही...






क्यूँ नही मनाते  आंतररष्टीय पुरुष दिवस
पुरुष क्यूँ पहले से ही स्शक्त हैं...
नही ज़रूरत उसे किसी प्रोत्साहन की...
हां महिलाए आज भी निर्भर हैं पुरुषो पे..
नही कर सकती अपनी मनमर्ज़ी
तभी उन्हे साल मे एक दिन सम्मान दिया जाता हैं
दया की जाती हैं उनपे
तू भी जी ले अपनी मर्ज़ी से..
लेकिन तब भी क्या वो...
अपनी मर्ज़ी का जी पाती हैं नही..
नारी कल भी गुलाम थी आज भी हैं...
पुरुषो की कल भी झूठी शान थी 
आज भी कायम हैं...बोलो क्या मेरी बात सच नही..
जब तक चाहा, जज्बातो से खेला...
वरना दोष लगाकर निकाल दिया..
केवल एक दिन हमारे नाम करने से क्या होगा..
देनी हैं तो आज़ादी पूरी दो...दया मत करो......
हमे नही चाहिए रहम की भीख
ये भीख तुम ही रखो...


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