काश
काश हम दोनों
चांदनी रात में
एक दूजे संग
बैठकर खाना खाते
चाँद उतर आता
हमारी थाली में
मिलबाँट कर
आधा आधा खाते
न रहती कोई चाह
चांदनी की
बस यु ही
बैठ आपस में
फुरसत से बतियाते
लगा कर
यादों का तकिया
सिरहाने
चुपचाप तानते
सितारों का लिहाफ
सर पर
जाने कब
बेखबर हो
वही यादों संग
लुढक जाते
न होता कोई
जगाने वाला
न सताने वाला
बस यु तुम संग
ज़माने से बेखबर हो
उम्र बिताते