महिला दिवस
आज इतना दुलार क्यों
रोज रोज मिलते है ताने
झेलने पड़ते है कितने बहाने
नहीं पूछ सकती
कोई प्रश्न
नहीं दे सकती
उत्तर का प्रतिउत्तर
तमाम लांछन बेवजह
सहने पड़ते है
मैं पूछती हूँ
सिर्फ एक दिन क्यों
दुलार करते है
अपनी जिंदगी का
हर कोना
कर देती है न्योछावर
अपना नाम तक भूल
रह जाती है
फलाने की पत्नी
फलाने की माँ
उसकी बहू
उसकी खुद की जनी
औलाद भी
पितृ वंश की कहलाती है
फिर भी
स्त्री दया की पात्र क्यों
कही जाती है
सदियो से ढूंढ रही हूँ जवाब
अब तक नहीं मिल पाया है
जब भी पुछा
बहुत बोलती हो तुम
यही ख़िताब पाया है
पूछने है बहुत से प्रश्न
अगर
समय मिले तो बतलाना
बेबस
लाचार
हीन
ये तोहमते
हम पे
कभी मत लगाना
कभी मत लगाना