Friday, April 1, 2016

सरदार जी का रिटायरमेंट


रिटायरमेंट कहू या कॉम्प्लीमेंट
सच वक़्त कितनी जल्दी गुज़र जाता है 
हाथो से छूट जाती है 
समय की कमान
सारे तीर जल्दी जल्दी खत्म हो जाते है 
रह जाती है न भूलने वाली खट्टी यादें
जिंदगी के उतार चढाव
वक़्त की ढलान से उतर कर आ गए
रिटायरमेंट की दहलीज़ पर
अभी कल की ही तो बात थी
नई नौकरी ज्वाइन की थी
अपना शहर 
अपना घर
सब पीछे छोड़ कर
आँखों में कुछ कर गुजरने की चाहत
पैरों में विधुत सी गति
लगता था एक छोर से दूसरा छोर
सब एक हो जाये
लेकिन नौकरी इतनी सरल नहीं होती
बहुत सी महीन बारीक सुरंगों से होकर गुजरना पड़ता है
हर साल लाद दिए जाते है टारगेट
जो कभी पूरे होते हैं 
कभी अधूरे रह जाते है
उन्ही के साथ कुछ खवाब
दम तोड़ जाते है
कितना मुश्किल होता है 
हर साल बढ़ते रहना
अपना अस्तित्व बनाये रहना
कहने को सरल
लेकिन बहुत ही मुश्किल
अप्रैल आते ही अप्रैज़ल की घबराहट
मार्च आते ही लक्ष्य तक जाने की टेंशन
साल दर साल यही सिलसिला
सुबह जल्दी जल्दी काम पे निकलना
रात को थक हार कर घर लौटना
अनवरत सिलसिला
लेकिन वक़्त ने पकड़ा दूसरा किनारा
आ गया नौकरी का आखिरी दिन
आज से टूट जायेगा से क्रम
कंपनी भले ही मुझे रिटायर कर दे
लेकिन अभी मैं थका नहीं हूँ
अभी दौड़ूंगा 
लेकिन धारा के विपरीत
अपने गुरु के लिए
सच्चे पादशाह के लिए
ईश्वर की ओर
अपनी शुष्क जिंदगी को सरल करके
शुद्ध होने के लिए
अपनी शांति के लिए