औरत
तेरे अल्फाज़
देख न
कैसे जल रहे है
बिलकुल तेरी तरह
जैसे उम्र भर
तेरी मासूमियत
जलती रही
राख होती रही
फिर भी तू
चुप रही
ए लड़की
कुछ तो कहती
अपनी सफाई में
क्यों यु ही बेवजह
जलती रही
वो भी
किसी और की
ख़ुशी के लिए
अपने वजूद को मिटा
सिसकती रही
तू क्या है
देवी
या कुछ और
कभी न
सिद्ध कर पायेगी
यु ही तड़पती हुई
हमेशा की तरह
पुरुष के पैरो में ही
आसरा पायेगी
रौंदी जायेगी
फिर भी
कुछ न
बन पायेगी