समय की ज़ंज़ीरो मे...
तुम चुप रहे
मैं तुम्हारे बोलने का
इंतज़ार करती रही
मैं कई बार रूठी तुमसे
तुम्हारे मनुहार का
इंतज़ार करती रही
हर बार मेरा इंतज़ार रहा बेकार
ऐसी कौन सी हिचकिचाहट थी
जो नहीं स्वीकार कर
पा रहा था हमारा प्यार
तुम्हारी खामोशी ने
हमे दूर किया हैं
खो देने को मज़बूर किया हैं..
लेकिन खोकर मेरे पास
आए भी तो क्या?
मैं भी अब मज़बूर हूँ
समय की ज़ंज़ीरो मे...
मैं तुम्हारे बोलने का
इंतज़ार करती रही
मैं कई बार रूठी तुमसे
तुम्हारे मनुहार का
इंतज़ार करती रही
हर बार मेरा इंतज़ार रहा बेकार
ऐसी कौन सी हिचकिचाहट थी
जो नहीं स्वीकार कर
पा रहा था हमारा प्यार
तुम्हारी खामोशी ने
हमे दूर किया हैं
खो देने को मज़बूर किया हैं..
लेकिन खोकर मेरे पास
आए भी तो क्या?
मैं भी अब मज़बूर हूँ
समय की ज़ंज़ीरो मे...