Saturday, December 29, 2012

मैं जीना चाहती हूँ माँ



अब कौन कहेगा ये शब्द
मैं जीना चाहती हूँ माँ
सो गई दामिनी रह गई बातें
जब तक ना मिलेगा न्याय
भटकती रहेगी दामिनी
इंसानियत हुई शर्मसार.......
दहल गया सबका दिल
लड़ती रही दामिनी
मौत से पल पल.....
साथ था देश का हर दिल
हर आँख नम हैं दिल भारी हैं..
दामिनी जा चुकी हैं..
अभी भी न्याय मिलना बाकी हैं..
देश के नेताओ का जागना अभी बाकी हैं..
ये दामिनी नही हम ...
नारी जाति की मौत हैं...
देश की सुरक्षा की मौत हैं
इंसानियत की मौत हैं..

तुम लौट आओ डिसेंबर जाने वाला हैं

एक बार तो मिलने चली आओ डिसेंबर जाने वाला हैं
कैसा गुज़रा हैं ये साल बताओ डिसेंबर जाने वाला हैं

खुश हो जाओ की ...मिलने का साल आ रहा हैं फिर
यू ना आँसू बहाओ डिसेंबर जाने वाला हैं

शायद अब के बरस भी वो ...लौट कर ना आए
तन्हाइयो रूको .. अभी छोड़ के ना जाओ डिसेंबर जाने वाला हैं

ये क्या के रात दिन... उसकी याद में डूबे रहना
ना गम की बारिश मे नहाओ डिसेंबर जाने वाला हैं

ए मेरे दुखों के साथियो खुश हो जाओ
अपनी अपनी घरों को सजाओ डिसेंबर जाने वाला हैं

क्या पता फिर डिसेंबर आए ना आए जान-ए-वसी
मेरी मानो अब तुम लौट आओ डिसेंबर जाने वाला हैं (sabhaar)

ये मुनाफ़े की तिजारत है, चलो इश्क करें.कहीं पढ़ा तो .................ख़याल आया..



इश्क़ मे भी मुनाफ़ा...ये कैसी बात हुई..
मैने तो सुना हैं इश्क़ हमेशा 
हार कर खुश होता हैं..
देकर प्रसन्न होता हैं...
यहाँ सब उल्टा क्यूँ होता
नज़र आ रहा हैं....
क्या दुनिया बदल गई..
या इंसान की सोच बदल गई...
नही रहा सब कुछ पहले जैसा..
ना इंसान..ना इंसानियत.......
लेकिन बेचारे इश्क़ को क्या हुआ..
उसकी फसल को कौन सा रोग लगा...
जो एकदम से घाटा और मुनाफ़ा
याद आने लगा.