Thursday, October 8, 2015

तेरी शर्ट में उलझे मेरे बाल


शायद ये खवाब ही था
जब शर्ट में तेरी उलझे थे मेरे बाल
वो पल कभी नहीं आया
या यु कहो
वो पल वो लम्हा 
कभी आँखों से ओझल ही न हुआ
तुम नहीं थे 
फिर भी थे इर्द गिर्द
मेरी आँखों में चमक बन कर
तुम्ही तो दीखते थे
मेरी सांसो की महक बन कर
तुम ही तो महकते थे
बार बार मेरा वो पलकों को बंद करना
क्या था
तुम ही तो ठहरे थे मेरी पलकों में
एक कहानी बनकर
अलहदा से
लेकिन 
अपनी निशानी बनकर
काश
एक बार तो तो अ जाओ
मेरी खवाबो को सजाने के लिए
मेरे खवाबों की ताबीर बन कर