Friday, April 15, 2016

itni shakti hame dena data


Thursday, April 14, 2016

आहत हूँ मैं


तुम्हारा यु मेरी 
इस तरह 
राह देखना
सच मुझे 
भीतर तक 
भिगो देता है
क्यों देखते हो 
मेरी राह
अब तो मैं 
तुम्हारे साथ भी नहीं
पास भी नहीं
तुमसे बहुत बहुत दूर
निकल आई हूँ 
जहाँ से लौटना 
संभव ही नहीं
ये रेशमी परदे
ये खिड़किया
मुझे पता है
सब आज भी 
वैसी की वैसी है
सड़क के 
उस पार का नजारा
रोज बदलता होगा
बदलती होंगी 
परछाइयाँ
सब मेरी तो नहीं
अब नहीं रहा 
वो वक़्त
वो बातें
मेरी तुम्हारी 
रोज की मुलाकाते
सच अब तुम मुझे
नहीं याद आते