Friday, September 20, 2013

ढोंग हैं उनका प्यार...

दिल से बेख़बर...
दिल की बात कहाँ सुनते हैं..
वो प्यार कैसे करेंगे ?
जो मोहब्बत मे भी 

राजनीति करते हैं..
ढोंग हैं उनका प्यार...

तभी झूठ, फरेब संग
वो जी लेते हैं..

खेल लेते हैं..जीत लेते हैं..

शब्द बोलते हैं..



शब्द बोलते हैं...सच कहा तुमने..
लेकिन कब...
जब तुम उन्हे  जुबा देते हो..
मुखर हो उठते हैं वो................
जब प्यार से उन्हे..सहला देते हो...
जाग जाते हैं वो नींद से...
सारा खुमार  उतर जाता हैं....उनका
जीने लगते हैं तुम्हारे मुख से वो..
भावों सहित कह  उठते हैं....
उतर जाते हैं अतीत मे ..........
फिर से एक बार अपना जीवन
अपनी तरह जी लेते हैं....
सच .............शब्द बोलते हैं......

Wednesday, September 18, 2013

ना खुद को बाटो ..ना मुझको ...हम बॅट नही सकते..

तुमने उसे जाने ही क्यूँ दिया..उस पार
जो उसे लौटना पड़े..अब करो इंतेज़ार...
मनाओ उसके बिना, अपने वृत और त्योहार...

ना खुद को बाटो ..ना मुझको ...हम बॅट नही सकते..

तुम संग बँधी ये डोर...
ले चल चाहे जिस ओर..
ओ मेरे चितचोर..........
चाहे मचाए दुनिया..
कितना भी शोर....
मेरे चितचोर...

अंश हो भगवान का तुम...
मूरत कैसे हो जाओगे....हाँ
तराशने से...तुम...और अच्छे
हो जाओगे..

जेठमलानी ने लिया क्यूँ अपने हाथ ये केस...
अच्छे ख़ासे हैं वो..फिर क्यूँ मोल लिया कलेश..

ईश्वर को मत दो कोई इल्ज़ाम
हम अपने करमो का फल पाते हैं...
वो तो बेचारा निर्दोष हैं बिल्कुल...
हम ही बुरे कर्म किए बिना नही रह पाते हैं..

कहाँ जा रहे हो बप्पा...बार बार आना तुम
मेरे घर आँगन मे...आकर खुशिया बरसाना तूम..

प्यार ना करे तो क्या करे..
खुदा की नेमत हैं ये.......
कैसे इसे बेकार करे????

उसकी थपकिया नही...मेरा चैनो सुकून हैं वो..
जो दे रहा हैं..वो मुझे चुपके चुपके..

यही हैं दुनिया....दुनिया के खूबसूरत  रंग....

जिन्हे लोग अपनी सियासत के बाल पे बेरंग करने पे तुले हैं..

मैं हूँ अपनी माँ की पहचान..
माँ हैं मेरी भगवान...उसने दी मुझे मेरी पहचान..

सब कुछ संभाल लो अपना..उड़ जाए तो
ना रखना मलाल कुछ अपना..

सज़ा लिया माँग मे सजना की तरह..
भोर का सिंदूर हैं ये..अपना हैं ये..

संभालना इसे....कहीं मोती लुढ़क ना जाए..


आप बदनाम नही हो सकते..
आपका नाम ही काफ़ी हैं..लोगो के लिए

Manisha Kulshestha...dwara lautaya gaya sammman

 जाओ लौटा रही हूँ मैं..
तुम्हारा दिया हुआ सम्मान...
मेरी कला, मेरी लेखनी..
तुम्हारे सम्मान की मोहताज नही..
मेरी लेखनी तो मेरे
अंदर की आवाज़ हैं...
जो शब्दो मे बहकर
बाहर निकल आती हैं....
देती हैं नये आयाम ..
मेरे विचारो को.......
तुम सब के भीतर..
तूफान खड़ा कर जाती हैं..
नही चाहिए...तुम्हारी खैरात..
किसी कलावीहीन को दे देना..
खुश हो जाएगा..
आनी उपलब्धि पे वो कम से कम
जश्न तो मनाएगा..
मैं समर्थ हूँ...
मुझमे अपना बल हैं..
खड़ी रह सकती हूँ अपनी टाँगो पे..
नही चाहिए..तुम्हारा सम्मान रूपी संबल हैं..
 ठुकराती हूँ इसे...अपने पास रखना..
अब किसी लेखिका के हृदय से ..
कभी मत खेलना..