Thursday, October 10, 2013



अपना सोचा भी कहाँ हुआ करता हैं..
दरवाजे, खिड़की, झरोखा, झिर्री....
सब खुद ही तो बंद किए थे मैने..
अब हवा की दरकार..क्यूँ?????

मेरा रूठना....उनका मनाना



तुम भी क्या क्या सोचती हो...
मैने ऐसा कब कहा.. 
बस इस बार खर्च थोडा 
ज़्यादा था सो कह दिया.... 
तुमने तो दिल पे लिया...
ऐसे नही सोचते............ 
आख़िर ब्याह कर लाया हूँ तुम्हे.. 
पूरा अधिकार हैं तुम्हारा... 
जो चाहे माँग सकती हो.. 
अब कुछ नही कहूँगा तुम्हे.. 
सच्ची..प्रॉमिस

Tuesday, October 8, 2013

विचारों की ठंड

सोचते सोचते 
खुद से खुद को..
विचारों की पहाड़ियों पे
बहुत दूर निकल आया हूँ..
विचार हैं कि 

सुनसान रास्ते की तरह
ख़त्म होने का 

नाम ही नही लेते..
एक के बाद 

दूसरा विचार...
ठंडी हवा के 

झोंके की तरह
मन को छूते ही जा रहे हैं..
और 

ये मन हैं कि
उन विचारों की ठंड से
सिहरा जा रहा हैं..

तुम छू लो आसमान...
बस इतनी सी खावहिश हैं
बढ़ते रहो हमेशा...
इतनी सी चाहत हैं..

क्या तुम्हे कुछ भी याद नही..


मैं अक्स हूँ तुम्हारा
शायद तुम्हे याद नही...
तुमसे ही हैं जीवन मेरा
शायद तुम्हे याद नही
क्यूँ करते हो इस तरह
हिफ़ाज़त मेरी
नज़रो से..दूर रहकर..
क्या तुम्हे मेरा कहा
कुछ याद नही...
रात बीती, दिन बीते...
बीट गई हैं सदिया..
तुम्हारे बिन..
सच कहो...क्या तुम्हे कुछ भी याद नही..