कहते हैं "पारा" टूट कर फिर एक हो जाता हैं..जैसे टूटा ही ना हो..
एक बार बचपन मे
मैने भी
घर से दुखी होकर
खा लिया था पारा
अपनी फिज़िक्स की
लॅब से चुरा कर
सोचा मर जाएँगे..
किसी को ना पता चलेगा...
दुनिया से दूर चले जाएँगे..
लेकिन वो मुआ
पारा भी बेवफा निकला
खा कर उसे .......
फिर भी मुझे
कुछ ना हुआ..
तब से पारे से
विश्वास सा उठ गया हैं...
वो बचपन की
बात सोच कर
अब भी बहुत
हँसी आती हैं..
आपकी पारे की बात
पढ़ी तो...
घूम गया वो
पुराना मंज़र.
( कक्षा नौ की एक घटना )