Wednesday, July 20, 2016

जुस्तजू


सुनो मैं अब 
जीना चाहती हूँ
चाहती हूँ 
कुछ पल लेना
खुली हवा में
सांस 

झूमते पत्तों संग
झूमना चाहती हूँ

सुनो कुछ पल मैं 
जीना चाहती हूँ

नहीं चाहती 
कोई पाश
करना चाहती हूँ 
अपनी ही तलाश
पिछला सब 
भूलना चाहती हूँ
सुनो मैं अब.....

बारिश में 
भीग कर
एक बार
घने जंगल में 
खोना चाहती हूँ
नहीं चाहती
कोई मुझे ढूंढें
हिरणी की तरह
यहाँ वहाँ ख़ुशी से
दौड़ना चाहती हूँ
सुनो अब मैं कुछ पल.....

सूर्य की 
गर्म रश्मियों संग
कुछ देर 
तपना चाहती हूँ
ताकि निकल जाये 
मन की 
सब सीलन
नहीं रहे 
कोई उबन

एकरस
नीरस
ऐसे शब्दों संग 
अब और नहीं
रहना चाहती हूँ
सुनो कुछ पल अब मैं...

न हो 
तेरी यादों के 
मीठे घेरे
न हो कोई 
पुरानी कडुवाहट
न हो बातों का 
कोई जहर
सुनो अब मैं 
बस कुछ पलो के लिए
जीना चाहती हूँ


आज़ाद ख्यालों में
उदास पहाड़ो पे अकेले
सर्द रातों में 
चाय की चुस्कियां
अमलतास, 
गुलमोहर, 
चिनार तले
अच्छे पलों को 
पिरोना चाहती हूँ

सुनो एक बार ही सही
मैं कुछ पलों के लिए 
जीना चाहती हूँ

दोगे न 
मुझे आसानी से 
बाहर जाने का रास्ता

कुछ पल की 
आज़ादी
हो न किसी की भी
दखलंदाज़ी
हूँ सिर्फ मैं
और मेरा 
अनमोल समय
मेरी सोचों संग
खुद को
भूल जाना चाहती हूँ
सुनो मैं कुछ पल...

मेरी बर्थडे गिफ्ट समझ कर ही 
दे दो न प्लीज

खाक होगा तू, तेरा गुरूर

ख़ाक हो जायेगा 
एक दिन ये शरीर
पड़ी रह जायेगी
सारी जागीर
न होगा तू 
न तेरा गुरूर होगा

एक तेरी याद होगी
कुछ तेरी महक का
सुरूर होगा

लोग करेंगे तेरी बातें
बातों में कुछ अच्छा
कुछ दबे लफ्जों में
बुरा तेरा जिक्र होगा

किया जो तूने उम्र भर
औरों का 
हक़ मार का इकठ्ठा
एक कतरा भी न तेरा 
अपना हुजूर होगा

सारी शानो शौकत
धरती पे ही रह जायेगी
रूह से बहुत दूर 
तेरा शरीर होगा

न बचेगी ग़मों की बारिशें
न सुखों का कोई एहसास रहेगा
बन्दे जा मिलेगा उस खुदा से
खुदा का तू नूर होगा

सारी ख्वाहिशें
सारी कोशिशे
सारे यकीन
जिन्दा रहने तक
अंत में तू होगा
तेरा बेजा फितूर होगा

मिला जो चोला मिटटी का
वो भी तुझसे बिछड़ कर
बेनूर होगा