इस करवाचौथ
देखो आ गया है करवाचौथ
मैं तुमसे दूर सही
फिर भी तुम रखोगी
मेरी खातिर उपवास
हर साल की तरह
कुछ ऐसा करना
दूर से चाँद के साथ
तुम नजर आओ
तुम पहनना वही
गहरे गले का लाल ब्लाउज
जिसमे तुम्हारी पीठ
चांदी की तरह चमकती है
हाथो में मैचिंग की चुडिया
जो तुम्हे मेरी याद दिलाती रहेंगी
लेकिन एक काम करना
फ़ोन पर उन चूड़ियों की
खन खन मुझे जरूर सुनवाना
अपने गोरे पैरों लगाना कलकत्ता वाला लाल महावर
वही का लाया हुआ सुर्ख लाल दिपदीपाता सिन्दूर
कमर में कमरबंद
लंबी काली छोटी
चटख सी नेल पालिश
खूब अच्छे से सजना सवरना
जब पूरी तरह सवर जाना तो
आईने में खुद को निहार कर शर्मा जाना
वो शर्म तुम मुझे जरूर भेजना
साथ में तुम्हारी खन खनाती हंसी भी
खूब खुश रहो
चाँद से यही दुआ है
देखना तुम्हारा ये रूप देख कर
चाँद शर्मा कर कहीं आस्मां से जमीन पर ही न कूद पड़े
ख्याल रखना अपना
शरद पूर्णिमा
चाँद
यानि
एक दूरी
जो अमिट है
जिसे देख तो सकते है
तारीफ भी कर सकते है
लेकिन
छु नहीं सकते
परछाई की मानिंद
दूर पास
पास दूर
खेल यु ही जिंदगी का
चलता रहे उम्र भर
होते रहे खुश
अपनी चांदनी को देख
चाँद के साथ
क्या हुआ जो नहीं मिले
हांथो से हाथ
मोहब्बत यु ही
बसती रहे
पलती रहे
खिलती रहे
एक दूजे में
(सभी को शरद पूर्णिमा की बधाई)
पिया मैं हार चली
किया था वादा
सदा साथ
चलने का
लिए थे
सात फेरे
अग्नि के समक्ष
खाई थी कस्मे
नहीं छोड़ेंगे
एक दूजे का हाथ
लेकिन ये क्या
टूट गई कस्मे
नहीं रहा
अग्नि का वास्ता
सिन्दूर
चूड़ी
बिछिया
मंगलसूत्र
सब पीछे छूट गए
नहीं निभा सकी अपना वादा
निकल गई
पिया की जद से दूर
ढीले करके सारे बंधन
दुनिया को करके आश्चर्यचकित
क्या करती
हार जो गई थी
लड़ते लड़ते
थक गई थी
ये टूटन
उसे फिर से
जोड़ न सकी
सांसो के शोर ने
उसे हरा दिया
जिस्म के जोर ने
उसे थका दिया
डॉ भी शायद
हार गए
ईश्वर की मंशा के आगे
ठगे से खड़े रह गए
पंछी उड़ गया
छोड़ गया
पिंजरा ख़ाली
अब पुकारो मुझे
मैं नहीं आने वाली
जबकि
वो जाना ही
नहीं चाहती थी
सबको छोड़ कर
अपनों को रुला कर
सबसे बिछड़ कर
लेकिन
नियति को यही मंजूर था कि वो
नया चोला पहने
दर्द से परे
एक नए जिस्म में प्रवेश करे
फिर से भरे
किलकारीया
खेले नए
माता पिता की गोद में
फिर से चुनाव करे
दुनिया की अच्छी चीजो का
बस खुश रहे
हँसती रहे
लेती रहे उड़ान
तुम्हे मेरी भी दुआएं लगे