Thursday, July 14, 2016

दर्द

दर्द उफ्फ़
जिसकी इन्तहा नहीं

पास है सब कुछ
लेकिन अपना नहीं

बीत रही है तन्हा
ये जिंदगी
लेकिन गिला नहीं

इंतज़ार तेरा बहुत है
मेरी हमनफ़स
लेकिन ऐ मौत
तेरा कुछ अता पता नहीं

भेज देती पैगाम तुझे
जल्दी आने का 
लेकिन तू है भी अपनी
बेवफा तो नहीं 

सुबह की राम राम

सुबह की राम राम
शाम तक काम ही काम
कुछ उलझने
कुछ सुलझने
यही है शायद
जिंदगी तुम्हारा नाम

बेबसी कहीं
कहीं है बेताबियाँ
कहीं है यादों की झलक
कहीं इंतज़ार की घड़ियाँ
करते रहेंगे 
तुमसे ही प्यार
जिंदगी तुम्हे
सुबह का राम राम

देखों न सूरज
आज कुछ नया लाएगा
चमकेंगे सबके उदास चेहरे
कुछ तो मन खिलखिलायेगा
होगी जो ख्वाहिशें
पूरी करना तुम
करना अच्छे काम
ऐ जिंदगी तुम्हे
सुबह की राम राम

Sunday, July 10, 2016

मौत


ए मौत तुम आना
उस अल्हड लड़की की तरह
जो बेबात हंसती है
मदमस्त रहती है
नहीं होती उसे 
दुनिया की फिकर
हर वक़्त खयालो में अपने 
गुम रहती है
न करती है आने वाले 
कल की चिंता
न ही 
पिछले कल की ओर देखती है
खुश रहती है 
अपने आप में
नहीं किसी से डरती है
रोते है लोग 
ऐसी लड़की के 
खो जाने पे
लेकिन वो 
अल्हड लड़की
बेफिकर रहती है
मौत तू देना 
कुछ यु दरवाजे पे दस्तक
जैसे 
वो लड़की 
कल कल झरने सी 
बहती है