Monday, April 9, 2012

तुम्हारा मुझे थाम लेना............
अहसान नही हैं हम पे, तुम्हारा प्यार हैं
जो तुम्हारी हर बात मे झलकता हैं..
नही रखते अहंकार, पुरुष होने का कभी
ये ही तो मुझे आश्चर्चकित कर देता हैं
वरना तो मैने देखा हैं हर जगह
अपने लिए दीन, हीन, दया की पात्र
कभी नफ़रत, कभी बेगानापन का भाव
सब जैसे आदत मे शुमार हो गये हैं
तुमने कर दिया हैं सबको परे
तो सब सपना सा दिखता हैं
नही हैं कोई उलाहने का भाव
किसी तरह की शिकायत
बस तुम्हारा प्यार दिखता हैं

कितने ज़हीन हो तुम


कितने ज़हीन हो तुम
बिल्कुल किसी
दार्शनिक की तरह
तुम्हारे विचारो की बुनावट
तुम्हारे सोचने की अदा
तुम्हारे मन मे लहराता
सोचो का सागर..........
तुम्हारी आँखो मे छिपा
गहन अध्यन...
चेहरे मे छिपा गहरा भाव

जैसे इसी से बनती हो किताबे
तुमने शब्दो को पिरो दिया हो
भाव मे....
तुम्हारी संवेदना आकार ले चुकी हो
सुंदर रचना का...............

जो अब हमारे हाथो मे हैं

Sunday, April 8, 2012

शायद यही प्यार


जब हम मिले तो
तुम्हारी आधी मुस्कुराहट
हमारी आधी मुस्कुराहट
मिल पूरी हुई
पूरी एक मुस्कुराहट....
भाग गई
बड़ी सी उदासी
दामन बचा कर..
ठहाका जो लगाया ..
दम लगा कर.............
(मिल गई थी जीने की वजह jo)

तुमने चुपके से मेरा हाथ दबाया
मैने सोचा लगता हैं
कोई नया ख़याल
तुम्हारे जहन मे आया..
मैं लगी मुस्कुराने........
कुछ सुगबुगाने..........
तुम भी हंस दिए

कल इमामबाड़े ki दीवार पे
अपना नाम लिखा देखा
जो बरसो पहले
हमने मिलकर लिखा था
आज भी चमक रहा था..
बस तुम नही थे.........
मेरे साथ..

छोटी छोटी बाते
रोज़ की मुलाक़ाते
ना मिलने पे बेचैन होना
पास होने पे लड़ते रहना
एक दूसरे का
ख़याल रखना
मनोभाव पढ़ लेना

(शायद यही प्यार कहलाता होगा पता नही आप बताए) 

क्या लिखू कैसे लिखू?

क्या लिखू कैसे लिखू?
जो अंतर मे समा जाए
मिट जाए भेद स्त्री पुरुष का
परमात्मा प्रगट हो जाए
सहज यौगिक क्रियाओं से
जो उत्पन्न होता हैं
कहते हैं नई स्रिस्टी का
तभी सृजन होता हैं
करने को नया सृजन
किसे प्रयोग मे लाउ
मिटे जब भेद सारे
तभी अभेद कहलाउ
सोचती हूँ नया जीवन
नया संगीत फिर गाउ
क्या लिखू कैसे लिखू?
जो सब मे समा जाउ