जिंदगी का बोझ सर पे रख कर रूमानियत ढूँढते हो...
कैसे हो तुम...फिर से जिंदगी ढूँढते हो........
बढ़ाओ हाथ दोस्ती कर लो
पचान फिर से नई कर लो
तक़दीर पुरानी हैं...
देखना कुछ इसमे नई निशानी हैं..गर देख सको तो
तुम्हे बुला कर कब कोई भुला हैं
चाँद हैं यहा..चाँदनी का झूला हैं
देखो आकर यहाँ जिंदगी एक मेला हैं
क्या जादू किया तुमने उस पर
दो शब्दो मे पूरा कर डाला
कैसी किताब थे तुम........
एक साँस मे ....
सरसरी निगाह से ही तुम्हे
उसने पूरा पढ़ डाला...
बात कद की नही मुस्कुराने की हैं
कैसे कोई मुस्कुराए जब चोट दिल पे हैं
अच्छा किया जो झेल गये वरना कितनो का घर बर्बाद होता
खोल भी दे दरबान गर ताला
पुरानी हवेली का तो भी
कौन कम्बख़्त निकलना चाहता हैं
रहना चाहते हैं क़ैद सब
यादों के गलियारे मे.....
खुला आसमान कौन देखना चाहता हैं..
कैसी आवाज़ लगाई
जो मेरे तक ना आई....
अदला बदली का खेल चलता हैं
वो लेती हैं हमसे चॉकलत.......
बदले मे प्यार मिलता हैं
posted by अपर्णा खरे @ 12:19 PM 0 Comments