रूहानी सुहानी
जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता हुआ आपका अपना ब्लॉग जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके और हमारे अनुभव को बताएगा..कैसे जिया जीवन, क्यूँ जिया जीवन और आगे किसके लिए जीवन हम सब आपस मे बाटेंगे...कही यू ही तो नही कट रहा...स्वासो की पूंजी कही यू ही तो नही लुट रही मिल कर गौर करेंगे..
Tuesday, March 27, 2018
वो चला गया
सब कुछ
छिटक गया
हाथ से गिर कर बर्तन
चिटक गया
यादें ही रह गई
वो तो
मुझे छोड़ कर
कब का
चला गया
छिटक गया
हाथ से गिर कर बर्तन
चिटक गया
यादें ही रह गई
वो तो
मुझे छोड़ कर
कब का
चला गया
वो क्यों जाता
इतना वक़्त होता
गर
वो जाता ही
क्यों
जुम्बिश देते
तुम्हारे नाजुक
दिल को
सहलाता ही
क्यों
अब तुम
डूबते उतारते रहो
उसकी याद में
वो चला
तुमको सता के
अपने काम पे
गर
वो जाता ही
क्यों
जुम्बिश देते
तुम्हारे नाजुक
दिल को
सहलाता ही
क्यों
अब तुम
डूबते उतारते रहो
उसकी याद में
वो चला
तुमको सता के
अपने काम पे
अब मौत से डर नही लगता
अब मौत से
डर नही लगता
रोज़ आती है
किसी न किसी को
ले जाती है
औरों की तरह
हम सब भी
कतार में खड़े है
अपनी पारी के
इंतेज़ार में
कब लाइन
आगे बढ़े
मेरा नंबर आये
मौत मुझे अपने
आगोश में ले जाये
हमारे उन
अपनो के पास
जो हमसे पहले
जन्नत पहुँचकर
बेसब्री से
हमारा ही
इंतेज़ार कर रहे है
बिछा रखी है
कोमल पलके
हमारे लिए
हम है कि
मौत के नाम से
कांपते है
उनके पास
जाने से ही
डरते है।
(अप्पू का आज का ज्ञान)
कविता में सब छिपा है
सोच की
गहराइयों से
झांकती कविता
कुछ न कहकर
बहुत कुछ
कहती कविता
अवसाद हो
या
प्रेम
लंबी छलांग
भरती कविता
सबसे सुंदर
सबसे प्यारी
तुम्हारी कविता
गहराइयों से
झांकती कविता
कुछ न कहकर
बहुत कुछ
कहती कविता
अवसाद हो
या
प्रेम
लंबी छलांग
भरती कविता
सबसे सुंदर
सबसे प्यारी
तुम्हारी कविता
तुम्हारी कविता
....................
तुम्हारी कविता को
तुमसे
प्रेम हो गया है
चूमती है वो
तुमको
कभी इठलाती है
इतरा कर
अपने आपको
कुछ विशेष
मानती है
इस से कहो
कभी मेरे घर भी आये
ठंडा पानी
मिठाई खाकर
मुझसे भी कुछ
इश्क़ फरमाए
मै यू ही उसे
सूखने न दूंगी
प्रेम की चाशनी में
पाग कर
उसे और मीठा
लज्जतदार कर दूंगी
बस जरा वो
नजदीक तो आये
मौत की स्याही
जिंदगी की सफेद
चादर पर
मौत की स्याही
अपना नाम लिख रही है
बदल रहे है
चेहरे दर चेहरे
मौत तेज़ी से
अपनी चाल चल रही है
चादर पर
मौत की स्याही
अपना नाम लिख रही है
बदल रहे है
चेहरे दर चेहरे
मौत तेज़ी से
अपनी चाल चल रही है
यमराज का मार्च एंडिंग
एक के बाद एक
सब छोड़ कर
हमें जा रहे
रुला कर बेतरह
क्यों लोग दुनिया से
असमय जा रहे
अब तो हर वक़्त
हमे अनजान सा
डर लगता है
लगता है
मार्च में महीने में
यमराज जी
शायद
अपना बही खाता
मिला रहे
खुदा खैर करे
सब छोड़ कर
हमें जा रहे
रुला कर बेतरह
क्यों लोग दुनिया से
असमय जा रहे
अब तो हर वक़्त
हमे अनजान सा
डर लगता है
लगता है
मार्च में महीने में
यमराज जी
शायद
अपना बही खाता
मिला रहे
खुदा खैर करे
चाँद का दर्द
चाँद से भी पुराना है
कभी शहर
कभी गाँव
कभी परदेस
न जाने किसने
कहाँ कहाँ उसे
भेज डाला है
वो भटकता है
दर बदर
यहां तक तो ठीक है
लेकिन
किसी ने ईद
किसी ने करवाचौथ में
बुलाकर
उसे हिन्दू मुसलमान तक
बना डाला है
कहे तो वो किस से
अपनी बात
किसी ने लैला
किसी ने मजनू
किसी ने मामा बनाकर
उसे बड़े पशोपेश में
डाला है!!!!