रूहानी सुहानी
जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता हुआ आपका अपना ब्लॉग जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके और हमारे अनुभव को बताएगा..कैसे जिया जीवन, क्यूँ जिया जीवन और आगे किसके लिए जीवन हम सब आपस मे बाटेंगे...कही यू ही तो नही कट रहा...स्वासो की पूंजी कही यू ही तो नही लुट रही मिल कर गौर करेंगे..
Tuesday, April 24, 2018
जिस्म का रूह से रिश्ता
सब छूट जाता है
वक़्त के साथ
जिंदगी की टीसन
फिर भी
सालती जाती
याद रहते है
वो लम्हे
जो जिये थे कभी
अपने लिए
तुम्हारे लिए
एक दूजे के लिए
वक़्त का काम है
दूरियां करना,
बिछड़ा देना
रूह को रूह से
दिल है कि
फिर भी
अलग नही
हो पाते
इसी का नाम है
मोहब्बत
जिस्म से
रूह का रिश्ता
जिसे लोग
कभी चाह
कर भी
अलग नही
कर पाते
वक़्त के साथ
जिंदगी की टीसन
फिर भी
सालती जाती
याद रहते है
वो लम्हे
जो जिये थे कभी
अपने लिए
तुम्हारे लिए
एक दूजे के लिए
वक़्त का काम है
दूरियां करना,
बिछड़ा देना
रूह को रूह से
दिल है कि
फिर भी
अलग नही
हो पाते
इसी का नाम है
मोहब्बत
जिस्म से
रूह का रिश्ता
जिसे लोग
कभी चाह
कर भी
अलग नही
कर पाते
मरहम
अपनी कलम से
कुछ गम
लिख के हम
दिल को मरहम देते है
लोग है .....
कि हमें
न जाने क्या क्या
समझ लेते है.....
कहूँ क्या किस्सा
गमे दिल का ए दोस्त
अब तो गम के
गुलशन में भी हम
कुछ देर खुश रह लेते है।।।
कुछ गम
लिख के हम
दिल को मरहम देते है
लोग है .....
कि हमें
न जाने क्या क्या
समझ लेते है.....
कहूँ क्या किस्सा
गमे दिल का ए दोस्त
अब तो गम के
गुलशन में भी हम
कुछ देर खुश रह लेते है।।।
पुरुष विहीन धरती
क्या करे स्त्री
पुरुष भरोसा छोड़
उसे उड़ना ही होगा
जब नही बची है
धरती पे जगह
उसके लिए
उसे आकाश में
विचरण करना होगा
आकाश में
नया घर
बनाना होगा
जहां पुरुष प्रवेश
पूर्णतः वर्जित होगा
मालकिन भी स्त्रियां
दासी भी स्त्रियां
राजा भी, रानी भी
बाँदी भी स्त्रियां
हर तरफ़ होगा
सिर्फ और सिर्फ
स्त्रीयों का हुजूम
अपनी तरह से
जीने का हक़
अपने कानून बनाने का
हक़
अपने मन की रानी
होगी वो स्त्रियां
शायद
किसी कानून की
आवश्यकता ही न पड़े
कानून तो
स्त्री पुरुष को
सभ्य
बनाने के लिए होते है
असभ्य
प्रायः पुरुष हुआ करते है
स्त्रियां नही!!!!@अपर्णा खरे
बुढ़िया तेरा जीना सच
मरना भी सहज कहाँ
लोग मरने भी नही देते
कहते है
मरोगी तो क्रियाकर्म में
बहुत पैसे लगेंगे
सब रिश्तेदारों को बुलाना पड़ेगा
कोई चाय मांगेगा
कोई दूध
इतना पैसा कहां से आएगा
चुपचाप पड़ी रहो
यू ही खखारती
कम से कम
कुछ मांगती तो नही
रूखा सूखा खाकर पड़ी रहती हो
झांकती आंखों से तुम देख पा रहे हो न ये मजबूरी
सुन रहे हो न तुम!!@@@@अपर्णा खरे