तुम जिंदगी से बतियाती रही
मैने तुमसे कहा
चलो बाज़ार चलते हैं
तुम बच्चो का रोना ले बैठी
मैने तुमसे कहा काली घटाए छा गई हैं
तुम छत पे कपड़े लेने जा पहुची
मैने कहा इस बार होली पे नई सारी ले लेना
तुम बोली बच्चो के कपड़े ले आए...
मैने कहा चलो साथ मे कोई गीत गाये
तुमने कहा चलो मुन्ने को सुला आए
मैं करता रहा इश्क़ की बाते
तुम जिंदगी से बतियाती रही
तेरा प्यार मुझे हर दम सताएगा
तेरी तरह गर किसी ने चाहा तुम्हे
तो मैं कहाँ सह पाउगा
ढूंढुगा तुम्हे हर जगह
सुकून कहाँ मैं पाउगा
देखेगा वो जब चाह से तुमको
कलेजा फट ही जाएगा.........
आज जो मौसम बहुत सुहाता हैं
तेरे जाने के बाद ना जाने कितना तडपाएगा
चलेगी जो ठंडी हवा तेरे गालो को छूकर
कर देगी मदहोश मुझे, मेरे बालो को छूकर
तब कहाँ फिर चैन आएगा......................
तेरी याद का सागर सीने तक मचल आएगा
करूँगा क्या तब मैं मुझे खुद नही मालूम
तेरा प्यार मुझे हर दम सताएगा
पन्ने हो या जिंदगी
पन्ने हो या जिंदगी
प्यार से पिरोना पड़ता हैं
पिरोने के बाद खुद ही उसे
पढ़ना भी पड़ता हैं
अब इबारत उसकी सुख हो या दुख
साथ लेकर चलना पड़ता हैं
सूज जाए जो उंगलियाँ
गरम पानी का सेक भी
देना पड़ता हैं............
फिर जब इकट्ठा हो जाते हैं
सुख दुख के ढेर सारे पन्ने
तो मोटी सुई से सिल्ना भी पड़ता हैं
पूरी हो जाए जो किताब तो
संत कबीर की तरह
ईश्वर के आगे ज्यूँ का त्यु
रख भी देना पड़ता हैं
श्री जगजीत सिंह जी के जनम दिन की शुभ कामनाए....
तेरी आवाज़ कभी ना भुला पाएँगे
तुम नही होंगे लेकिन याद आओगे
करेंगे याद तुमको...आँखो मे खुद ब खुद
आँसू आ जाएँगे.....................
तुमने हमारे दर्द को अपना दर्द समझा था
गीत मे ढाल उन्हे हमे हर बार सौपा था
उन गीतो को हर वक़्त गुनगुनाएँगे.........
तेरी आवाज़ को कभी ना भुला पाएँगे
माना जनम मरण सब मिथ्या हैं
आना जाना देह का धरम हैं
जिसे तुमने बखूबी निभाया हैं
संजीदा दिल हैं हमारा
गला भी भर आया हैं
तुम्हारे गीतो ने हमे बहुत रुलाया हैं
तुम्हारे गीतो भरे प्यार को कैसे हम भुलाएँगे
तेरी आवाज़ को कभी ना भुला पाएँगे...
तुमने कुछ कहा नही ...............उसने कुछ सुना नहीं
कितना पाक दिल था ...................तुम्हारा
कह सकते थे बहुत कुछ
लेकिन कभी कहा नहीं
समेट सकते थे उसे ...............अपनी बाहों मे
लेकिन उसे छुआ नहीं
दोस्ती थी जन्मो जन्मो की
लेकिन उसके घर गये नहीं
पा सकते थे उसे ..............अपना नसीब बनाकर
लेकिन कभी कुछ कहा नहीं
जज्बातो को रखा अपने भीतर ..........संभाल कर
दिया कभी उन्हे हवा नहीं
अजीब प्यार था तुम्हारा
तुमने कुछ कहा नही
उसने कुछ सुना नहीं
"स्त्री होकर सवाल करती हैं" नही नही .............स्त्री होकर कमाल करती हैं
"स्त्री होकर सवाल करती हैं"
नही नही .............स्त्री होकर कमाल करती हैं
ए नारी .....तू भी क्या कमाल करती हैं
हिम्मत नही हुई आज तक
तुझसे पहले किसी स्त्री की
कि कर सके पुरुषो से कोई सवाल
लगा सके उनपे कोई इल्ज़ाम
तू क्यूँ अपने उन सबसे अलग होने का
भरम भरती हैं...स्त्री होकर सवाल करती हैं
सीता ना पूछ सकी राम से अपनी ग़लती
ड्रॉपदी ने भोगा कुंती माँ का ये कहना कि
"आपस मे बराबर बराबर बाट लो"
ना उठा कभी सवाल क्यूँ बाटू अपने आप को
पाँच पतियो के साथ.......
स्त्री ये अन्याय तुझे सहना हैं
कोई सवाल ना पहले किया
ना अब तुझे करना हैं..............................
कई बार कलंकित हुई तेरी चाची, मामी, मासी और बुआ
बेचारी ने उफ्फ तक ना किया
चाह कर भी ना लगा सकी इल्ज़ाम अपनो पे
जबकि अपनो ने ही उन्हे शर्मसार किया
आँखो मे आँसू को यू ही रहना हैं
स्त्री होकर सवाल नही करना हैं
गर सवाल उठे दिल मे तो लेना अगला जनम
पुरुष के रूप मे..लेकिन विडंबना ये हैं कि
तब सवाल नही रह जाएँगे
पुरुष के रूप मे आते ही अहंकार आड़े आएँगे
सवालो से अब तुझे नही पुरुषो को डरना हैं
अपने हर अन्याय का जवाब अब तुझे ले कर रहना हैं
अब तो बस कही कहना हैं "स्त्री होकर मलाल करती हैं"
क्यूँ नही अपने आप को दुनिया के सामने शान से रखती हैं
लोग अब यही कहेंगे "स्त्री होकर कमाल करती हैं"
इस किताब मे मेरी भी दो कविताओ को स्थान दिया गया हैं..बहुत अभारी हूँ श्री माया मृग जी की..