खुली रह गई खिड़की उनके मकान की...
खामोश आँखे..
पेट की आग
जीने की मज़बूरी...
भूखे बच्चे.........
थका हारा पति..
कहाँ से लाए...
वो सब ....
जिनसे जिंदगी मिले...
खुशिया लौटे...
कहीं से खुश्बू आई जफरान की..
लगता हैं....खुली रह गई खिड़की उनके मकान की...
मत देखना आईना सजने सवरने के लिए..
लेकिन ऐसा ना हो...तुम्हे गंदा देख
चली आए वो लड़ने के लिए...
प्रेम तो किसी के बाँधे से भी बँध जाता हैं..
बस बंधन चाहिए गोपियो सा...
वात्सल्य चाहिए माँ जाशोदा सा..
सखा चाहिए अर्जुन सा..
मज़बूत डोर चाहिए राधा के जैसी...
मजनू देखे कई हमने..
ताकते राह कालेज की
सुबह हो या शाम..नही भूलते
इबादत अपनी महबूबा की..
हम तुमको जमी पे उतार लाए हैं अपनी खातिर...
वरना तुम तो अर्श पे रहने के आदी हो..