रूहानी सुहानी
जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता हुआ आपका अपना ब्लॉग जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके और हमारे अनुभव को बताएगा..कैसे जिया जीवन, क्यूँ जिया जीवन और आगे किसके लिए जीवन हम सब आपस मे बाटेंगे...कही यू ही तो नही कट रहा...स्वासो की पूंजी कही यू ही तो नही लुट रही मिल कर गौर करेंगे..
Saturday, June 18, 2011
इन्हे बरस ही जाने दो
आँसुओं की बात निकली हैं
तो इन्हे बरस ही जाने दो
क्यूँ रोकते हो इनको
ये तो बस दर्द का ज़रिया हैं
टूटा होगा अंदर से जब कोई बहुत बार
तब ही छलकी होंगी आँखें
कहाँ कब किसने तीर मारे हैं
कैसे ये से पाई होंगी
अपनों के गम की मार इन्हे
कहाँ ले आई हैं
जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ रुसवाई हैं
नाम देते हैं बेवफा का हमको
तुमने भी कहाँ प्रीत निभाई हैं
ये तो मेरी आँखे हैं
जो आज भी भीग जाती हैं
याद मे तेरी
वरना तुमने भी कहाँ
वफ़ा निभाई हैं...
क्या तू ही भगवान
मेरे भीतर प्रश्न है आया
क्या तू ही भगवान है
मॅन ने ही उत्तर थमाया
हा तू ही भगवान है..
बस थोड़ा सा अंतर है
तेरे भीतर दुनिया का घर है...
उसके आत्मिक लक्षण है
तेरे भीतर ये है मेरा ये है तेरा
वो देखे सबको एक जैसा
तेरे भीतर जगत का पसारा
वो तो है निरलेप न्यारा
मेरे तेरे का भेद मिटाए
तो हम शुध ब्रह्म बन जाए
फिर तू ही तो है भगवान कहाए...
तुझसे बुद्धि माँगे हम
हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
भगवान तेरे आगे हम
कैसे करे हम आत्म विवेचना
तुझसे बुद्धि माँगे हम
दे दो प्रभु हमे ज्ञान का सागर
भर दो मेरी बुद्धि की गागर
पाए तुमसे ही सदज्ञान हम
तेरे है हम, तेरे ही रहे हम
तुझसे पाए प्राण हम
हे प्रभु देना विवेक तुम
हमको अपने हाथ से
ताकि हम कर सके विवेचना
क्या है ये अज्ञान गहन
ज्ञान की बातो मे हम झूले
अज्ञान की बातें हर दम भूले
पाए बुद्धि और ज्ञान हम
दूर करे घनघोर तम
हाथ जोड़ कर करे प्रार्थना
भगवान तेरे आगे हम
kaise banti hai rachnaiye??
mere mitra Ubhaan Ji dwara
उन हदों को छू आया हूँजहाँ आसमान बाकी था
वह गिरता कैसे
अभी नीचे मैं खड़ा था
answered by Satish sharma ji....
बुधू नहीं है आसमान
सब समझता है.
अगर गिरना ही है तो
सीधे जमीन पर गिरेंगे
इन बिचोलियों के हाथ
आखिर क्यों पड़ेंगे
इस लिए जब तक
एक पेड़ भी जमीन पर खड़ा है
तब तक आसमान भी अपनी
जगह पर वहीँ अड़ा है
क्यों की बुधू नहीं है
आसमान सब समझता है
answer by me.....
गर बुद्धू नही है आसमान
तो एक जगह पे क्यूँ खड़ा है..
आए उतर के जमी पे
देखे क क्या मज़ा है..
धरती क प्राणी कैसे?
धरती की दुनिया कैसी.?
कैसी अल्मस्त है ये दुनिया
उसको नही पता है
पत्थर था जो मोम बना वो
पत्थर था जो मोम बना वो
तेरे बस छू लेने से
आँसू जो था बूँद बना वो
तेरे बस छू लेने से
कितनी सख्ती थी उसमे
बड़ा पाषण हृदय था वो
तूने ऐसा प्यार दिया कि
पिघल के अब मोम बना वो
ऐसा क्या था बस तेरे छू लेने मे
दिल की सख्ती जाती रही अब
प्यार बढ़ा हर कोने मे
पत्थर था जो मोम बना वो
तेरे बस छू लेने से
एक स्टोरी याद आ गई ........
एक गाव मे बहुत से पंछी रहते थे सब का आपस मे बड़ा प्यार था उसी गाव मे एक शिला थी जिसका नाम मुदार शिला था वो बहुत सुंदर थी सारे पंछी उसे बहुत प्यार करते थे रोज़ उसके पास आते थे उससे बाते करते थे अपनी कहानी सुनाते थे यहा तक की अपना चेहरा भी देख लेते थे लेकिन मुदार शिला मोर से प्यार करती थी वो रोज़ मोर का इंतेज़ार करती थी की वो आए..मोर को पता नही था कि मुदार शिला उसे प्यार करती है जब उसे पता चला तो वो उसे देखने आया पर जैसे ही मुदार शीला ने मोर को देखा वो पिघल कर पानी बन गई...इस स्टोरी का मोरल यह है की दुनिया से जब गुरु के पास आए थे तो बहुत सख़्त थे लेकिन जैसे ही गुरु ने परमात्मा प्रियतम की बात सुनाई तो पिघल कर पानी हो गये
दुनिया मे दुख कितने कम है
दुनिया मे दुख कितने कम है
ये कहने का किसमे दम है
दुनिया तो दुखो से भरी पड़ी है
न जाने कितने दुखी इंसान
जिनके पास बेहिसाब दुखो
की लड़ी है....
एक दुख जाता नही
चार और आ जाते है...
बेचारा एक से लड़ पता नही..
वो चार और दबा जाते है..
मज़बूर इंसान बेचारा क्या करे
लड़े तो लड़े..
ना लड़े तो भी लड़े...
कुछ उपाय नही सूझता है..
क्या भगवान भी कभी नही
पसीजता हैं.....
हे भगवान कही से आओ
कोई तो राह सुझाओ..
हमे अपनी राह लगाओ...
नही तो दुखो से छुटकारा दिलाओ..
आओ मेरे राम आओ...
आ कर मुझे गले लगाओ..
अपना बनाओ..
अब नही होगा देश का नैतिक पतन
देश का उद्धार हो और बढ़े अपना वतन
छोड़ दे होशियारिया ना बने देश के दुश्मन
देश मे ही हमारी जान है
देश से ही हमारी पहचान है
अपने ही देश को जो लूटते
वो महा बैईमान है
अब नही करने देंगे देश का उनको हनन
बचाएँगे इस देश को ये तो है अपना चमन..
बुद्ध, कबीरा, नानका के देश मे,
जहा जन्मी मीरा, सीता, अहिल्या नारियो के वेश मे
होगा फिर नव सृजन
जिस देश से लोगो ने ली हो साधना की शिक्षा
क्यूँ माँगे नैतिक मूल्यो की भिक्षा
नही करने देंगे देश का अब और खनन
करते रहेंगे देश को शत शत नमन शत
शत नमन...
कहाँ गये हो जानम तुम
कहाँ गये हो जानम तुम
भूल गये क्या हमको तुम
कोई चिट्ठी , कोई पत्रि ना कोई तार है..
अब जमाना ईमेल का, क्या नेट भी बेकार है..
प्लीज़ मुझसे बात करो
या फिर मुझको कॉल करो
नही तो हम ये समझेगें
बदल गये हो हमसे तुम
हमसे बदल के जानम तुम
यू भी ना जी पाओगे
मेरे जैसी प्यारी, हँसी
दोस्त कहा से लाओगे
छोड़ो पुरानी बाते तुम
आकर मेरे साथ चलो
कहाँ गये हो जानम तुम
भूल गये क्या हमको तुम?