रूहानी सुहानी
जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता हुआ आपका अपना ब्लॉग जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके और हमारे अनुभव को बताएगा..कैसे जिया जीवन, क्यूँ जिया जीवन और आगे किसके लिए जीवन हम सब आपस मे बाटेंगे...कही यू ही तो नही कट रहा...स्वासो की पूंजी कही यू ही तो नही लुट रही मिल कर गौर करेंगे..
Saturday, June 25, 2011
सब कुछ करना पड़ता हैं
सच हैं मैने ही
रची थी महाभारत
पर क्या करता ?
मज़बूर था
भाई भाई का हिस्सा
लेने मे मगरूर था
करनी पड़ी व्यूह की रचना
क्यूँ की पांडव का समय
प्रतिकूल था
पांडव हो कोई,
न्याय दिलाना पड़ता हैं
वरना धरती से सत्य
कही उठ जाएगा
इस धरा पे मानव
साँस कैसे ले पाएगा
ग़लत कहे या
सही कहे तू
सब कुछ करना पड़ता हैं
जीत हो सत्य की
इसलिए महाभारत
भी रचना पड़ता हैं
लाने को शांति
सब कुछ करना पड़ता हैं
भाई का प्यार
भैया क्यूँ अकेला समझा
लक्ष्मण तो आज भी
आतुर आपके साथ को
उसने अपनी फॅमिली
ना कभी देखी थी
ना देखा आज हैं
वो कल भी तेरे साथ था
आज भी तेरे साथ हैं
क्यूँ लगते सीता माँ पर
ऐसा ये इल्ज़ाम हैं
वो बेचारी कब हैं कहती
ना चलूंगी बनवास मैं
भाई आज कुछ आपको
शायद अपने पे कम विश्वास हैं
हम तो आज भी आपके ही साथ हैं
ना लेना परीक्षा भाभी की
वो तो आपका ही रूप अपार हैं
छू पाए उन्हे कोई
ऐसा ना कोई शूरवीर महान हैं
भैया अब बहुत दे चुके परीक्षा
अब राज तिलक का समय आज हैं
कल भी तेरे साथ थे
आज भी तेरे साथ हैं
क्यूँ किया मॅन मे संशय
मॅन को लगा आघात हैं
तेरे हैं तेरे ही रहेंगे
ऐसा पूर्ण विश्वास है
Friday, June 24, 2011
बाँध के पत्थर पंछी से
बाँध के पत्थर पंछी से
कहते हो तुम सैर करो..
रख के ख़यालो को मॅन मे
कहते हो तुम मौज़ करो.
रख कर ख़यालो को मॅन मे
क्या तुमने कभी सुख पाया है..
देकर अपने विचारो को गुरु को..
तभी आनंद मौज़ मनाया है..
मुक्त करो अपने मॅन को..
अपने मॅन मे तुम तेज़ भरो
बाँध.....................
मॅन का रास्ता गॅड्डवला
गुरु का रास्ता आनंडवाला
मॅन के रास्ते पे घुटन भरी है..
गुरु की सड़क पे किलकरी है
मॅन को मॅन से मनाकर
आत्मा की तुम सैर करो
बाँध...
जीवन को विश्राम ना दो...
खोना पाना,पाना खोना ...
ये ही तो बस जीवन है
अनुपम सुंदर जीवन को
तुम विश्राम ना दो
बहते जाओ अनवरत निरंतर
इसको तुम आराम ना दो..
रुकने की पीड़ा को..
बिना पंख के थके पखेरू
आछे से पहचाने है
रुक जाने का दर्द क्या होता ?
वो ही तो बस जाने है
अंतिम बेला तक इस जीवन को
विश्राम ना दो....
बढ़ते जाओ....
तक कर पंछी सो जाते है..
अपने प्यारे नीड़ो मे..
लदे युद्ध और थके कभी ना
आते है वो वीरो मे..
ऊडो पंछी बन..रूको कभी ना
जीवन को विश्राम ना दो...
बढ़ते जाओ......
कैसी है ये रेलमपेल..
कैसी है ये रेलमपेल..
खेल रहे सब कैसा खेल.
कितनी महगी सब्जी है..
कितना महगा दूध दही..
ग़रीब बेचारा कैसे खाए..
मुह को ढके चुपचाप सो जाए..
सरकार हुई है एकदम फेल.
कैसी है ये रेलमपेल. ..
सोना पहुचा आसमान मे..
चाँदी जैसे चंदा..
चंद पैसो से काम चले ना
कुछ भी नही है मंदा..
निकल रहा है सबका तैल..
प्रभु करो कुछ अपना खेल..
कैसी है ये रेलमपेल..
सोना समझो गेहू (दालो) को..
चावल को समझो चाँदी..
सोच समाज के खर्च करो तुम..
करो ना कुछ बर्बादी..
तभी होगा महगाई से मेल..
तभी मितेगी रेलमपेल...
हम भी खेले ऐसा खेल..
मिट जाए ये रेलमपेल...
हमको उज्जवल कर दो भगवान.
हमको उज्जवल कर दो भगवान..
कुछ ऐसा वर दो भगवान..
अज्ञान रहे ना कुछ भी बाकी..
हृदय रहे हमेशा साफ..
राग द्धेश से खुद को बचाए..
सदा रखे हम मंन को साफ..
कुछ ऐसा कर दो भगवान..
हमको उज्जवल कर दो भगवान
ज्ञान शिला पे मंन को पट्को.
भीतर से फिर मैल निकालो..
प्रेम रूपी नील है डालो..
जो आए हम मे निखार..
जाए जब दुनिया के आगे
लोग कहे परमात्मा का श्रंगार
कुछ..ऐसा कर दो भगवान
पाँच विकार हमसे भागे..
कार्मेन्द्रिया तुम मे ही लागे..
ज्ञानेन्द्रिया भी हम मे जागे..
मॅन की हो हम से ही हार..
लगे सारी दुनिया परिवार..
कुछ ऐसा कर दो भगवान..
हमको उज्जवल कर दो भगवान
सुनो में लौट आया हूँ
सुनो
मैं लौट आया हूं
मेरी बातें
मेरे वादे
मैं अपने साथ
लाया हूँ,
सुनो मेरी
धड़कन में
वोही इक साज़
बजता है
अंदाज़ मेरी बातों का
तेरा अंदाज़ लगता है
ख़ज़ान के ज़्अर्द पत्तों को
बर्फ से सर्द
मौसम को
हिज्र की गर्म
आहों को
तन्हाई की
बाहों को
सुनो मैं
छोड़ आया हूँ
अभी जो
सक्त बाक़ी है
मेरा जो
वक़्त बाक़ी है
समेटो मुझ को
बाहो में
मुझे चंद
खुशियाँ दे डालो
मेरे सब गम
समेटो तुम
चंद लम्हे
मुझ को दे डालो
में सब रिश्ते
सभी नाते
सभी बंधन
सभी धागे
सुनो
में तोड़ आया हूँ
सुनो में लौट आया हूँ
अंतहीन बुढ़ापा
रिश्ते कैसे होते है.??
मानो तो अपने
नही तो पराए होते है..
एक छोटी सी चिड़िया को भी
प्यार से दाना खिलाते ही
वो झट अपनी बन जाती है..
एक नन्ही गिलहरी
कब मूँगफली
मुह मे रख
आँखो से थॅंक यू
कह जाती है..
कितना प्यारा सा
अनबोला रिश्ता होता है..
बिना स्वार्थ के
कैसा मासूम सा
चेहरा दिखता है..
ये थे अनकहे रिश्ते..
अब कहे हुए रिश्तो की ओर
चलते है..
उन्हे जीवन मे अपना
सब कुछ देते है..
फिर भी अंततः
खाली हाथ मलते है..
बेटा विधवा माँ से
काम ना चलने का
बहाना करके
सब लूट ले जाता है..
बेटी आती है
मज़बूरी बताती है
और सहानुभूति के साथ साथ
बचा खुचा माल भी
ले जाती है..
बच जाता है
अंतहीन बुढ़ापा..
जिसकी कोई सुध नही लेता है..
सेवा करना तो दूर
एक फोन कॉल भी
भारी पड़ता है..
तब काम आते है
चंद पुराने दोस्त..
कुछ अच्छे सच्चे पड़ोसी..
जो बेचारी विधवा माँ का
छोटा मोटा काम
कर दिया करते है..
और बदले मे ले जाते है.
सारी आशिशे.
दोस्त बेचारी विधवा माँ को
रोने नही देते है..
स्वार्थ का साज़
बजाने नही देते है..
वो जीवन की सच्चाइयाँ
छिपाते है..
बस साथ निभाते है..
उन्हे आगे ले जाते है..
कैसा होता होगा भगवान...
कैसा होता होगा भगवान...
पिता जैसा ..अनुशाशित
माँ जैसा .. ममतामयी .
बहन जैसा ...स्नेही
भाई जैसा...दोस्ताना
पत्नी जैसा...एकनीस्ट
पति जैसा..आत्मीय
बच्चो जैसा...चंचल
दोस्त जैसा...हमेशा साथ निभाने वाला
या फिर गुरु जैसा...परिपूर्ण
भगवान तो शायद इन सबका..
मिक्स्चर होता है..
जब जिसकी ज़रूरत होती है..
उस रूप मे सामने आ जाता है..
ज़रूरत है पहचानने की..
यही पे हमसे भूल हो जाती है..
और वो हमसे दूर
बहुत दूर चला जाता है..
पहचाने भगवान को...
बढ़ाए ईश्वर मे अपने
ईमान को..
क्यूंकी..प्यार..भरोसा ही
भगवान है..
अगर प्यार भरोसा ना हो तो
दुनिया वीरान है...
दुनिया वीरान है............
एक रंग की होती दुनिया
एक रंग की होती दुनिया
कैसी हमको लगती..?
एक रंग की तितली होती
एक रंग के फूल, सब्जी..
एक रंग की गिलहरी होती
एक रंग की साडी..
सोचो?
कैसा लगता मॅन को..
मॅन होता बस
नीरस सा..
रंग भरे है कितने
प्रकति मे..
रंग भरे है जीवन मे..
रंग प्रकति के लाल हरे है..
जीवन के सुनहरे..
इन रंगो से बढ़कर
रंग है..प्रेम का..
इस रंग मे यदि हम रंगते
हो जाते है लालो लाल..
प्रेम छिपाता
सारी कमी को..
प्रेम बढ़ाता जीवन मे
खुशी को..
पर इसे बाटना पड़ता है..
दिलो मे उतरना पड़ता है..
एक बार जो
उतरे दिल मे...
हो जाए वो मालामाल..
एक बार जो
देना सीखा
आनंद से
जीवनभर जाए..
प्रेम पाए..प्रेम लुटाए..
प्रेमी ही कहाए..
प्रेमी ही बन जाए.........
दिन मे दिया जलाइए..
दिन मे दिया जलाइए..
फिर भी कहाँ?
सच्चा दोस्त पाइए..
सच्चा दोस्त तो
किस्मत की बात है..
ना मिले जिंदगी मे
सच्चा दोस्त…
तो समझो दिन मे भी
रात है..
रात को गर
दिन बनाना है ..
कही से भी एक अदद
सच्चा दोस्त ढ़ूंड के लाना है..
जो हमारे सुख दुख मे
हाथ बटा ले..
हमे दुनिया की ग़लत बात से
बचा ले..
जो सच्चा दोस्त
ढ़ूंडने मे हो जाए सफल..
तो लहलहा उठेगी
जिंदगी की फसल..
वरना झूठो से
काम चलाइए..
उन्ही के साथ घूमिएे, फिरीे..
और सारे शौक फरमाइए..
पर सावधान रहिए..
वक़्त पे ये
क़ाम नही आएँगे..
बल्कि आपका भी
सारा समय..पैसा, एनर्जी
सब लूट ले जाएँगे…….
मंन तो जिन्न के जैसा है
मंन तो जिन्न के जैसा है..
दिन भर हमको ख़ाता है..
कभी उठा कर इधर ले जाता ..
कभी उठा उधर ले जाता..
इस्थिर हमको ना कर पाता है..
दुख मे हमको दुखी कर देता..
सुख मे हमको सुखी कर देता..
सम रहना ये भुलाता है..
मंन तो जिन्न के जैसा है..
दिन भर हमको ख़ाता है..
गुरु मिले तब हमे बताए..
सीधी राह पे हमे चलाए..
मंन को किसी काम पे लगाए..
सबको दादा का ज्ञान सुनाए..
करे प्रेम और सबसे कराए..
गुरु कहे इसे सीढ़ी दिखाए..
दिन भर उतरे, चड़े, चढ़ाए..
ज़िक्र करे और सबसे कराए..
तभी प्रभु को भाता है..
मंन तो जिन्न के जैसा है..
दिन भर हमको ख़ाता है..
बँधी रहे पतंग संग डोर.
बँधी रहे पतंग से डोर..
खिचा रहे मंन गुरु की ओर..
बनू पतंग मैं उड़ू गगन मे..
मस्त फिरू मैं नील गगन मे..
पर प्रभु रहे हम पे सिरमौर..
ऐसी अपनी हो जीवन डोर..
काम क्रोध कुछ ना हो मंन मे..
मंन रहे हमेशा नई तरंग मे..
लोगो को खुश करना हो..
अपनो के संग चलना हो..
करू प्रगट मैं सदा प्रभु को..
ना हो मंन मे कोई शोर..
खिचा रहे मंन प्रभु की और..
खिचा रहे मंन गुरु की और
हर इल्जामात का शुक्रिया
चोट पे चोट
दिए जाने का शुक्रिया
ए दोस्त तेरा इस अदा से
करीब आने का शुक्रिया
कत्ल भी किया और
इल्ज़ाम भी ना लिया
कैसे किया?
प्यार भी किया तो
ऐसा किया............
मुझे इस तरह टूट के
चाहने का शुक्रिया......
मेरे प्यार को आज़माने का
शुक्रिया
मेरी निष्ठा और ईमानदारी को
आस्तीन का साँप
बनाने का शुक्रिया
मेरे विश्वास को एक पल मे ठोकर
लगाने का शुक्रिया....
किस किस बात का करूँ शुक्रिया
ए दोस्त तेरी हर बात,
हर इल्जामात का शुक्रिया
Thursday, June 23, 2011
बिंदास मुस्कुरओ
बिंदास मुस्कुरओ
कि क्या गम है..
जिंदगी मे टेन्षन
किसको कम है..
अपनी टेन्षन की
बात करते हो..
कभी औरो से भी
पूछ लिया करो..
ना पूछो तो
कम से कम……
उन्हे टेन्षन तो
ना दिया करो..
बाटने से बढ़ती है खुशी..
यह हम सब जानते है..
ना जाने क्यूँ
फिर भी खुशी..
क्यूँ नही बात पाते है..
कंजूसी कर जाते है..
बाट कर देखो
खुशी को यारों
पाओगे सारी दुनिया को
कदमो मे..
यह प्यार की दास्ता .
प्यार की कहानी है..
मुस्कुरा के जीना
इसकी रवानी है..
मुस्कुराते जाओ
गम को भुलाते जाओ..
हसो और हंसाओ..
प्यार की
नई दुनिया बसाओ…….
खुशी का दिन ये आया है..
खुशी का दिन ये आया है..
देखो वो लौट आया है…
जिसे मैने
आज़ाद किया था ..
अपनी यादो से..
अपनी बातो से….
फिर भी वो
मेरे पास था..
उसे एक पल भी कभी
भूली नही थी मैं..
उसे हर पल टूट कर
चाहा था मैने..
वो फिर आज
प्यार की सौगात लाया है..
देखो वो लौट आया है..
जो गया था
छोड़ कर मुझको अकेला..
तन्हाइयो से लड़ने को..
मुझे मालूम था
वो लौट आएगा..
मेरे बिना वो
रह ना पाएगा..
देखो आज फिर
विश्वास जीता है..
वो फिर लौट आया है…
जो मेरा था ….
वो मुझे मे ही
समाया है..
दाव पे लगता भगवान
वाह रे इंसान ..
रोज़ दाव पे
लगाता है भगवान..
इच्छा पूरी हो तो
अच्छा है भगवान..
इच्छा अधूरी हो तो
बुरा है भगवान..
क्यूँ उसकी बातो मे
राज़ नही देख पाते है..
छोटी-छोटी बातो मे,
उस बेचारे पे दोष लगाते है..
इंसान तो जिंदगी मे
प्रतिपल
अपने करमो का
फल पाते है..
भगवान को दोष देना
छोड़ दे..
खुद को भगवान के
सहारे छोड़ दे..
देखना, दौड़ के नैया
पार लगाएगा..
तुम्हे, तुम्हारे हर दुख से
उपर उठाएगा..
ध्रुव, प्रहलाद की तरह..
तुम्हे भी अपनी गोद मे
बिठाएगा..
तुम्हे भी अपनी गोद मे
बिठाएगा.
सुख भी सुख हो,
सुख भी सुख हो,
दुख भी सुख हो..
ऐसा अपना जीवन हो..
न दुख मे झूले,
न सुख मे फूले..
ऐसा अपना जीवन हो..
दुख आते है
हमे उठाने ..
जीवन की कठिनाइयो से..
ये लड़ना है
हमे सिखाते
दुनिया के आघात से..
दुख हमको
मज़बूत बनाते..
सुख तो हमको
प्रतिपल डराते..
छिन जाने का
भय दिखलते..
हम मंन ही मंन
उन्हे मनाते..
तुम ना जाना छोड़ के..
जो सह लेता
एक बार दुख को..
वो पहाड़ बन जाता है..
टकरा जाता
चट्टानो से..
नदी निकल कर
लाता है..
दुख को यदि हम
दुख ना समझे..
समझे
परीक्षाकाल इसे..
जो परीक्षा
पास कर जाए..
हो जाए भाव पार वो..
रोज़ परीक्षा
हम देते है..
अपने नये क्लास की..
सुख भी सुख हो..
दुख भी सुख हो ..
संतो सा बस जीवन हो..
लोहा भी चाँदी बन जाता.
लोहा भी चाँदी बन जाता..
सह करके आघातो को..
क्यूँ मनुष्य दिन भर घबराता..
दुनिया के आघातो से..
रेल की पटरी पूरी काली..
कितनी तपस्या करती है..
उपर से उसके रेल गुज़र के ..
उसको चमकाया करती है..
दूर से वो प्रतिविम्बित होती..
चाँदी की पटरियो सी..
पर ये तो वो ही जाने..
सहा है कितनी मुसीबतो को..
हम भी जब है सहते
जीवन की कठिनाइयो को..
तभी चमकते..
तभी है बनते........
सोना भी है..आग को सहता..
तभी निखरता..चमकता है..
हम भी बस यू ही निखरे …
ऐसी अपनी कामना है………..
तू मेरा अभिमान है..
दौलत वारू, शोहरत वारू..
सब कुछ अपना वारू मैं..
चाहे तो मेरी जान भी ले ले,
तेरा आगे हारू मैं..
तू मेरा जीवन, तू मेरा धन..
तुझमे बसती जान है..
तेरे लिए तो सब कुछ मेरा..
हर पल तुझपे कुर्बान है..
तुमसे क्या है रिश्ता मेरा
मंन इससे अंजान है..
है तुमसे मेरी प्रीत पुरानी..
तू मेरा भगवान है..
तुम प्रियतम हो…
तुम रहबर हो..
तुम मेरी पहचान हो..
तुम हो तो मैं हूँ..
तुम नही तो मैं भी नही..
तुमने दिया मुझे ज्ञान है..
अपना आप दिखाया मुझको..
खुद से खुद की पहचान कराई..
क्यूँ ना तेरे गुण गाऊ..
तू मेरा अभिमान है….
तू मेरा अभिमान है..
This poem is dedicated to my Loving Guru Dada Shyam.............