रूहानी सुहानी
जीवन की सच्चाइयों को उजागर करता हुआ आपका अपना ब्लॉग जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके और हमारे अनुभव को बताएगा..कैसे जिया जीवन, क्यूँ जिया जीवन और आगे किसके लिए जीवन हम सब आपस मे बाटेंगे...कही यू ही तो नही कट रहा...स्वासो की पूंजी कही यू ही तो नही लुट रही मिल कर गौर करेंगे..
Saturday, July 2, 2011
माँ तुम कितनी अच्छी हो
माँ तुम कितनी
अच्छी हो
जीवन मे कितनी
सच्ची हो
तुमने हमको
राह दिखलाया
सही मार्ग
चुनना सिखलाया
जब जब मैं
गिरी हूँ पथ पर
तुमने ही है
गले लगाया
मेरे भीतर जो
संस्कार भरे हैं
मां वो तुमने
ही तो गहे है
तेरे ही आदर्शो
पे चलकर
मैने जीवन पाया
हा तेरे आचरण
को माँ मैने
अपना आचरण
बनाया है
माँ तू है तो
जीवन है
तेरे ही तो रंग
मेरे भीतर है
तेरी ममता की
छाव मिले नित
तेरे प्राणो से
प्राण मिले नित
यही प्रभु से माँगा है
हो माँ तू शत आयु….
यही हमारी प्रार्थना है…
तुम्हे फिर आना होगा
तुम्हे फिर आना होगा
आ कर फिर
ना जाना होगा
तुम्हारी प्यारी बाते
वो रोज़ रोज़ की मुलाक़ते
मुझे बेचैन करती है
मेरा सुख चैन हरती है..
क्या तुम्हे भी सब
याद आता है
मिलन का वो लम्हा
अब तक महकाता है
तुम हो चाहे दूर कितने
पर यकीन है इतना
मुझे ना भूल पाओगे
अपनी मसरूफ़ियत मे भी
हर जगह
मुझे ही पाओगे
भूलना भी चाहोगे मुझे तो
निगाहो मे हरदम
मुझे ही पाओगे...
रोबोट सा चलता इंसान
रोबोट सा चलता इंसान
मूल्यो को खोता इंसान
कितना संवेदनहीन
होता जा रहा है ये
भावनाओ को ही
भूलता जा रहा है ये
भावनाओ का मूल्य
अब कुछ नही रहा
बस जो दिमाग़ रूपी
आइ सी कहा
वो ही किया
दिल की चिप को
कर दिया है इनॅक्टिव
बस दिमाग़ से फ़ायदे
की करते है प्रॅक्टीस
माँ, बाप, भाई, बहन
ना जाने कहाँ गये?
शायद दुनिया की भीड़ मे
कही गुम हो गये
जब ज़ज्बात की
आइ सी होगी फ्रेश
तभी सारे रिश्ते
होंगे रेफ्रेश
वरना तो इस
रोबोट मे
इंसान मिलना
मुश्किल है
इंसान अगर
मिल भी जाए तो
फीलिंग्स मिलना
नामुमकिन है
चलो फिर से सोए
इंसान को जगाए
भूले रिश्तो को
ताज़ा कर आए
तभी होगा
सच्चा पुरुषार्थ
जब इंसान सच मे
देख पाए यथार्थ
Dedicated to my guru Dada Bhagwaan...who was the founder of our satsang...
दादा का दिन है आया
मॅन मे नया उत्साह लाया
दादा का दिन है आया
मॅन मे नई उमंगे लाया
दादा ने खिलाई फुलवारी
उसमे झूमे है दुनिया
ज्ञान का पाठ पढ़ाया
जिसे सुनकर संसार
आश्चर्य मे आया
दादा ने दिया
"हूँ कुछ नहि" का मंत्र
जिसे सब प्रेमी पाकर धन्य
दादा ने दिया गीता ज्ञान
मुर्दो मे भी आ गई जान
दादा आपका ज्ञान
जीवन से लगाएँगे
हम भी आपकी तरह
जनम मरण मे
नही आएँगे
कैसे हम आपका
एहसान चुका पाएँगे
शुक्र मे जीवन बीताएँगे
सबको ज्ञान सुनएँगे...
ज्ञान मे टिकेंगे
और सबको टिकाएँगे
चलो हम मान लेते हैं
चलो हम मान लेते हैं,
ये दुनिया झूठ कहती है,
तुम्हे हम से नही उल्फ़त,
चलो हम मान लेते हैं,
तुम्हारी बेक़रारी की,
वजह कुछ और ही होगी,
निगाहें मुझसे मिलते ही,
तुम्हारे मुस्कराने का,
सबब कुछ और ही होगा,
जिसे केयेम'फेहम लोगों ने,
मोहब्बत नाम दे डाला,
मगर इतना बता दो तुम,
बिछड़ते वक़्त जान-ए-जाना
पलट कर देख के हम को,
तुम्हारी झील सी आँखें,
छलकती जा रही थी क्यूँ
हमे तडपा रही थी क्यूँ??????
किस्मत का लेखा जोखा है
सब किस्मत का
लेखा जोखा है
किसी को मिला प्यार,
किसी को धोखा है
जिसका जितना संयोग
होगा वो उतना ही पाएगा
बाकी के लिए
सिर्फ़ ललचाएगा
छोड़ दे सब किस्मत पे
क्यूँ हर समय
तू रोता है
सब किस्मत का
लेखा जोखा है
किसी को मिला प्यार,
किसी को मिला धोखा है
तेरे ही पिछले
करमो का योग होता है
जो तुझे इस जनम मे
प्राप्त होता है
ये फल कभी दुख
कभी सुख होता है
तुझे वो ही सब मिला है
जो तू बोता है
तू क्यूँ बार बार
दुखी सुखी होता है
सब किस्मत का
लेखा जोखा है...
किसी को मिला प्यार,
किसी को मिला धोखा है....
फ़ैसला उसका था
फ़ैसला उसका था
या मेरा था
मगर बहुत दूर
जाना था
साथ चलने की
थी कोशिश
भले ही
हार जाना था
चले थे साथ
ये कह कर
निभाएँगे
सभी रस्मे
जाएँगे बहुत दूर
भले ही
लौट ना पाए
मगर थी रेत
सी थी बाते
जिन्हे बस
ढेर होना था
ना मंज़िल थी
ना साथी था
बस तन्हाई का
आलम था
करे क्या
शिकायत उस से
वो मेरा था
उसे मेरा ही
होना था..
संत कही जाते नही
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
निज धाम
जब दुनिया मे उसका
पूरा हो जाता है काम
तो वो अपनी इंद्रियो को
समेट कर पा जाते है
चिर विश्राम
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
अपने धाम
संत तो कही ना जाकर
अपने भक्तो के
दिल मे उतर जाते है..
एक एक को
ज्ञान सुनाकर
आत्मकार बना जाते है..
जैसे सब चाहते है
नया कपड़ा
वैसे ही संत भी
पुराने चोले को छोड़कर
नया रूप धारण कर
बार बार धरती पे
आते है..
जग मे नया
प्रकाश फैलते है
प्यार की नई
दुनिया बसाते है
सब जगह है
परमात्मा
यही दिखाते है...
और अंत मे पा
जाते है अपना राम
संत कही जाते नही
वो तो जाते है
अपने धाम
एक मुट्ठी राख की
एक मुट्ठी राख की
यही है
अपना अस्तित्व
एक शब्द
प्यार का
यही है
अपना दायित्व
क्या हम
अपना दायित्व
निभाते है...
कड़ुवे बोलो से
खुद को बचाते है..
हम चाहते है..
सब हमे प्यार करे..
अपनी जान भी
हम पे निसार करे..
पर हमने
क्या दिया है..
कभी ये भी सोचा है.
पाने की लालसा मे
जीते जाते है..
औरो को हमसे
क्या चाहिए ये तो
बस भूल जाते है..
दायित्व को कैसे निभाए...
प्यार की नई दुनिया बसाए..
दुनिया से दुश्मनी मिटाए
दूसरो की ना सोचे..
जो हमसे बने
करते जाए
अस्तित्व को
यदि हम बचाएँगे
तब भी राख की ढेरी तो
बन ही जाएँगे
अब इस एक मुट्ठी
राख को क्या बचाना है..
यह तो वैसे भी
तब्दील हो जाना है
जिए, जिलाए, देते जाए.
दुनिया के सबसे
सुखी इंसान कहलाए..
दौलत, दिमाग़ और दिल
दौलत, दिमाग़ और दिल
जब जाते है मिल
तो सारी दुनिया
जाती है इनके
समन्वयय से हिल
इंसान हो जाता
है खुशदिल
दौलत हो
सदबुद्धि हो
सही जगह पर
खर्च करने की
वृति है..
तभी दौलत की
बनी रहे आवृति है
दिमाग़ लगे
भगवान मे
कर जाए कुछ
काम ये
बने प्रभु के
पुजारी हम
मिल जाए
भगवान से हम
भगवान तो
कुछ ना माँगे है
वो तो बस
माँगे है दिल
दे दे हम
भगवान को दिल
हल हो जाए
हर मुश्किल
अगर नही ये तीनो है
जीना दुनिया मे
मुश्किल है...
ख़लील जिब्रान की कलम से...
तुम्हारे बच्चे
तुम्हारे नही है..
वे जीवन की
जिग्यासा
के पुत्र पुत्रिया है
वो तुम्हारे द्वारा
आए है पर तुमसे नही
यधपि वो तुम्हारे साथ है..
पर वे तुम्हारी
संपत्ति नही है..
तुम उन्हे अपना प्रेम
दे सकते हो
अपने विचार नही
क्यूंकी
उनके पास स्वय के
विचार है..
तुम उनके शरीर पर
अधिकार कर सकते हो
उनकी आत्मा पर नही
उनकी आत्मा 'काल' के गृह मे है
जॅहा तुम स्वप्न भ्रमण
भी नही कर सकते
तुम यह प्रत्न तो
कर सकते हो
की तुम उनके जैसे
बन जाओ
परन्तु उन्हे
अपने जैसा
बनाने का प्रत्न
मत करो
क्यूंकी जिंदगी
पीछे की ओर
नही जाती
ना ही बीते हुए
कल के साथ रुकती है..
तुम्हारी कमान द्वारा
तुम्हारे बच्चे
जीवंत बान (बो) के
समान आगे आते है...
खोटे सिक्के
हम तो ठहरे
खोटे सिक्के
तुमने रूप
निखारा है
अपना ज्ञान देकर
भुलाया....संसार सारा है
हमने की थी
कितनी भूले
छानी थी
ममता की धूले
फिर भी तुमने
स्वीकारा है
हम तो ठहरे
खोटे सिक्के
तुमने रूप
निखारा है
देकर अनुभव
बनाया अपने जैसा
किया हमारे
विकारो का सौदा..
देकर प्रेम हमको
तुमने तारा है
हम तो थे खोटे सिक्के
तुमने रूप निखारा है
खोटा सिक्का
कही ना चलता
जिसको मिलता
वो ना रखता
तुमने हमको लेकर के
प्यार से सवारा है
हम तो थे खोटे सिक्के
तुमने रूप निखारा है
एक बार एक फल वाला था उसको सब खोटे सिक्के दे जाते थे और फल ले जाते थे वो किसी का भी सिक्का वापस नही करता था ऐसे ही बहुत दिनो तक चलता रहा उसके पास बहुत से सिक्के हो गये उसका अंत समय आया तो वो भगवान से बोला भगवान जैसे आज तक मैने किसी का भी खोटा सिक्का नही वापिस किया वैसे ही मई भी तुम्हारे लिए खोटा सिक्का हू मुझे भी तुम स्वीकार कर लो एसका अर्थ ये है की हम लोग गुरु के पास खोटे सिक्के जाते है और गुरु हमे प्यार से अपना बना लेता है...
हम तो है कठपुतली जैसे
हम तो है कठपुतली जैसे
नाचते रहते हरदम
जैसे चाहता हमे नचाता
डोरी पकड़े हरदम
डोरी उसकी
सुख मे घूमे तो
हम सुखी हो जाए
रहे कृपा उसकी तो
दुख हमको
छू भी ना पाए
भाई बहन
माता पिता
सुख संपत्ति से भरता
डोरी घूमे तो
सारी खुशिया ले लेता
दुख मे ऐसा कर दे..
सुख की
सोच ना पाए
ऐसा है कठपुतली वाला
पकड़ के हमको
नाच नचाए
छोड़ दे सब कुछ
उसके उपर
ना सोचे कुछ कल की
रहे सदा हम आज मे
सुख ही सुख मनाए
टूटे मॅन से कोई
टूटे मॅन से कोई
खड़ा नही होता
छोटे मॅन से कोई
बड़ा नही होता
टूटे मॅन को
जोड़ना होगा
रूठे मॅन को
मनाना होगा
प्यार करके मॅन को
परमात्मा मे
लगाना होगा
तभी बड़ा होगा
हमारा मॅन
बड़े मॅन से ही
बड़े काम कर पाएँगे
छोटे मॅन से आकाश क्या ?
धरती को भी
नही छू पाएँगे
सबकी मदद मे
आगे आए
प्यार से सारी दुनिया को
अपना बनाए
संतो जैसा अपना भी
जीवन बनाए
तभी होगा हमारा मॅन बड़ा
तभी मिलेगा सामने
परमात्मा खड़ा
सब मे परमात्मा को देखे,
सबको दिखलाए
आज से अपना भी मॅन
बड़ा बनाए.....
तेरा तेरा कहते कहते
तेरा तेरा कहते कहते
तर जाता है प्राणी
मेरा मेरा कहते कहते
मर जाता है प्राणी
तेरे और मेरे का
अंतर बहुत बड़ा है
तेरा तेरा किया
नानक ने तो
दुनिया मे उनका
नाम हुआ
सिख धर्म के
पालक बनकर
दुनिया को नया
आयाम दिया
मेरा मेरा कहते कहते बकरी
चॅड जाती है सूली पर
मर कर ही वो तार है बनती
धुन्ति रूई घर घर
सूली पर चड़ने के बाद
जब वो तू ही तू ही
चिल्लाति
तभी उसे मुक्ति है मिलती
सभी के काम वो आती
यदि हमे मरना है बार बार
तो मेरा मेरा कहे दिन भर
कर दे अपने को बेकार
तेरा तेरा कहते कहते
करे परमात्मा का आभार
कहते है गुरु नानक जी को उनके पिता दुकान पर बैठाया की दुकान चलाओ एक दिन एक ग्राहक आया और बोला बीस किलो गेहू दे दो..नानक जी ने तौलना शुरू किया और एक, दो, तीन करते करते तेरह पे आते ही रुक गये और दुकान का पूरा गेहू तौल दिया तब तक मे पिता जी आ गये और बोले क्या कर रहे हो..बोले तेरह कर दिया अब क्या मेरा...पिता ने घर से निकाल दियाऐसे ही बकरी मैं मैं करती रहती है जब उसे काटा जाता है और धुनिया उससे रुई धुनता है तब उस मे से तू तू की आवाज़ आती है और वो मुक्त होती है...मेरा कहने से मॅन मैला हो जाता है तेरा से दुनिया मे तर जाते है...
मैने रेत को हाथ मे उठाया
मैने रेत को हाथ मे उठाया
तो वो फिसल गई
मैने जिंदगी को
गले से लगाया
तो वो मचल गई
कहाँ रुकती है?
ये जिंदगी
ये तो साथ चलती है..
सांसो का दामन
थाम के
आगे बढ़ती ही जाती है
थम जाए साँसे
तो कहाँ है जिंदगी?
बातों ही बातों मे देखो
कैसे निकल गई जिंदगी
रेत और जिंदगी
एक जैसी है
पकड़ लो इनको..
नही रहती ये
वैसी की वैसी है..
आना और जाना
दुनिया की रवानी है
जो जिंदगी मे
कुछ कर जाए
उसकी अलग निशानी है
निशानी को अंजाम
दे दो तुम
तो कुछ संभल
जाए जिंदगी
वरना यू ही बेकार बातों मे
उलझ जाए जिंदगी
मैने प्यार से
समझाया तो देखो
कैसे संभल गई जिंदगी
संशय चूर करो भगवान,
संशय चूर करो भगवान,
कृपा दृष्टि कर दो हे राम..
मोह ममता का छत्र हटाओ
ज्ञान रूप कर दो हे राम
संशय..........
अहंकार मेरा हरो तुम,
अपने जैसा कर दो तुम,
पहुच जाउ मैं तेरे धाम..
संशय........
आत्मा से आत्मा को जानू,
सबको अपने जैसा मानु,
करो दया हे दृष्टि महान..
संशय..........
शबरी सा पावन प्रेम हो
प्रहलाद सी टेर हो
अर्जुन सा मैं बनू योद्धा
कर जाओ कुछ ऐसा काम
संशय...................
Thursday, June 30, 2011
इन्हे छलक जाने दो
आँखो मे
इन्हे छलक जाने दो
गुबार हैं दिल का ये
इन्हे निकल ही
जाने दो
गहरी अंधियारी
रातो मे
कुछ उठा
धुआ सा हैं
बनके चिंगारी इसे
उछल जाने दो
देखते हैं क्या
हश्र निकलता हैं
इन कीमती अश्को का
मोतियो की
शक्ल मे
इन्हे ढल जाने दो
रास्ते गुमनाम हैं तो क्या
साथी तो पुराने हैं
हस्ते खेलते गमो से
सब पार हो ही जाने हैं
नया रास्ता बनाएँगे
मंज़िलो को फिर से
करीब लाएँगे
आज हैं अंधेरा
घना तो क्या
कल तो सूरज
चमकेगा
नई रोशनी से
सारा जहाँ
फिर से दमकेग़ा
पीछे ना देखना
कोई आवाज़ भी दे
तो भी खुद को
ना रोकना
आज अपना हो
ना हो कल
हमारा हैं
साथी हमारा तुमसे ये
अटूट वादा हैं
कुछ कर दिख
लाने का इरादा हैं
बस तुम साथ रहो
हमारे आस पास रहो
तुम हो तो हम हैं
तुम हमारे संबल हो
मित्र सच्चा वो ही हैं
जो ना छोड़े रास्ता..
अपनो से ना वास्ता
Wednesday, June 29, 2011
वो तुम हो..
तुम मादक
शामो की
बाते करते हो
मुझे हर पल बस
डर लगता हैं
तुम बाहर से
कोहरा देखते हो
मुझे भीतर का
अंधेरा दिखता हैं
एक ख़ौफ़ मुझे
बस ख़ाता हैं
भीतर पसरा
सन्नाटा हैं
जो थे अपने
सब छोड़ गये
मझधार मे
नैया छोड़ गये
आगे बढ़ने की
लालच मे
एक ठोकर से
बस तोड़ गये
अब ना जीने की
आशा हैं
ना मरने का
गम सताता हैं
कैसी दुख की
इस्थिति हैं
मॅन दुख से
कुंभलाया हैं
अन्तेर्मन की
पीड़ा को कोई
ना समझ
पाया हैं
ऐसे मे
मेरे दोस्त
कोई अपना
मिल जाए
मुझको संयत
कर जाए
आँसू जो निकले
आँखो से
उनको अपनापन
दे जाए
क्या कोई ऐसा
होता हैं
जो मेरे लिए भी
रोता हैं
वो कोई नही
तुम हो
मेरे दोस्त
वो तुम हो..
Tuesday, June 28, 2011
सर्कल सा है ये जीवन
सर्कल सा है ये जीवन
घूमता रहता पहियो पे
कभी घूमे तो दिन हो जाए
कभी घूमे तो दिन ढल जाए
कभी घूमे तो सुख आ जाए
कभी घूमे तो दुख दे जाए
कभी लगे बेकार है जीवन
कभी लगे की प्यार ही जीवन
प्यार को बस बढ़ाते जाए
दुख आने पर ना घबराए
करे सामना हस कर यू
दुख हो जाए पल मे छू
जैसे बसंत का मौसम आए
प्यार से जीवन भर जाए
प्यार ही बस करते जाए...........
तू सब कुछ पा जाएगा
वाह रे इंसान तूने
ये क्या किया
सुख माँगा जीवन मे,
सुख पाया
फिर भी कभी
शुकराना नही किया...
वाह रे...
रॅंका और बंका की मानिंद
तू कभी नही बन पाया..
सुख भेजा भगवान ने
फिर भी हाथ ना लगाया
मिट्टी को मिट्टी ही समझा
सोने को ठुकराया..
एक तू है जो दिन भर
सुख के लिए भटकता है
भगवान तो इतना प्यारा है..
जो तेरी भावनाओ के लिए
तरसता है..
तू दे भगवान को
अपनी भावना
सब कुछ पा जाएगा
ना सोचा हुआ भी
तेरी राह मे
आ जाएगा....
मोड़ ले मॅन को आगे बढ़ जा
तू सब कुछ पा जाएगा.............
रॅंका और बंका कृष्ण के दो भक्त थे उनकी भक्ति बहुत प्रगाड़ थे..एक बार अर्जुन को अपने उपर अहंकार आ गया तो भगवान बोले चलो तुम्हे अपने एक भक्त से मिलवाता हू रॅंका और बंका रास्ते से जा रहे थे कृष्ण और अर्जुन छिप के खड़े हो गये रास्ते मे कृष्ण ने चुपके से एक मोहरो की थैली निकली और फेक दी रॅंका आगे आगे जा रहा था उसने देखा की मोहरो की थैली पड़ी है उसने सोचा ये देख कर मेरे भाई को लालच ना आ जाए उनसे उस थैली को मिट्टी से दबाना श्रुऊ किया पीछे से बंका आ गया उसने पूछा क्या कर रहे हो..तो बोला कुछ नही मोहरो की थैली को मिट्टी से दबा रहा हू तो बंका बोला रॅंका तू तो रंक का रंक ही रह गया कही मिट्टी को मिट्टी से दबाते है अगर ऐसे भी पड़ी होती तो भी म नही देखता...अर्जुन को ये देख कर अपने उपर शरम आ गई..ऐसे होते है भगवान के भक्त